पुणे की वैज्ञानिक ने यादव रसोइये के ऊपर केस दर्ज कराया क्योंकि उसके बने खाने से उसका धर्म भृष्ट हुआ।





"पुणे में मौसम विभाग की वैज्ञानिक मेधा विनायक खोले को जब ये पता चला कि उनके यहां खाना बनाने वाली ब्राह्मण नहीं है तो वह सन्न रह गई। वैज्ञानिक ने इसके बाद अपनी 60 वर्षीय नौकरानी के खिलाफ धोखाधड़ी और धार्मिक भावना को आहत करने का केस दर्ज किया है क्यों इससे उसके देवता अपवित्र हो गए …इसे अपना अपमान समझ निर्मला यादव ने पलटकर थाने में मेधा के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी। "-- दिलीप मंडल की फेस बुक वाल से


जातिवादी मानसिकता से ग्रसित लोग सामाजिक असमानता दूर करने के नाम पर कितना भी दलितों के घर खाना खाने का दिखावा कर लें। शिक्षा और पद भी इनकी मानसिकता नहीं बदल पाते। आरक्षण के मुद्दे पर सवर्ण ज्ञान देते हैं कि अब तो देश में समानता आ गई है, अब आरक्षण की कोई जरुरत नहीं। जमीनी हकीकत इस दिखावे से बहुत अलग है।

आप सोच भी नहीं सकते कि आजादी के इतने साल बाद भी आप किस तरह की मानसिकता वालों के देश में रह रहे हैं। जातिवाद की घटिया मानसिकता से उपजा जाति का दंश क्या होता है, यह पुणे में एक ब्राह्मण वैज्ञानिक के यहां खाना बनाने वाली से बेहतर कौन जान सकता है ?

पुणे में मौसम विभाग की वैज्ञानिक मेधा विनायक खोले को जब ये पता चला कि उनके यहां खाना बनाने वाली ब्राह्मण नहीं है तो वह सन्न रह गई। वैज्ञानिक ने इसके बाद अपनी 60 वर्षीय नौकरानी के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने का मामला दर्ज करा दिया।

पुणे स्थित भारतीय मौसम विभाग में वैज्ञानिक डॉ. मेधा विनायक खोले ने उनके घर में कार्यरत खाना बनाने वाली 60 वर्षीय निर्मला यादव पर धोखाधड़ी और धार्मिक भावना को आहत करने का केस दर्ज किया है.

मेधा के अनुसार, उन्हें अपने घर में गौरी गणपति और श्राद्ध का भोजन बनने के लिए हर साल ब्राह्मण और सुहागिन महिला की ज़रूरत होती है. मेधा पुणे के मौसम विभाग में डिप्टी डायरेक्टर जनरल के पद पर तैनात है.



क्या गंगा-यमुना का पानी लोगों को कायर बनाता है?

योगी आदित्यनाथ ने जब अखिलेश यादव के हटने के बाद मुख्यमंत्री निवास का गोबर और गंगाजल से शुद्धिकरण कराया, तो अखिलेश विरोध में एक शब्द नहीं बोल पाए. यह कहकर रह गए कि – दोबारा सीएम बनने
पर मैं भी शुद्धिकरण कराऊंगा।

वहीं महाराष्ट्र की निर्मला यादव को जब ब्राह्मण साइंटिस्ट मेधा खोले ने जाति के आधार पर अपमानित किया, तो निर्मला पलटकर आईं और थाने पहुंचकर मेधा के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी।

न दैन्यम, न पलायनम!!



निर्मला की जवाबी शिकायत के बाद मेधा के हाथपांव फूल गए और घबराकर उन्होंने निर्मला यादव के खिलाफ अपनी FIR वापस ले ली.

सामाजिक समता की लड़ाई विंध्याचल पर्वत के दक्षिण में ही मजबूती से लड़ी जा रही है.

निर्मला यादव का जोखिम समझिए. अब उसे पुणे शहर के किसी संभ्रांत घर में काम नहीं मिलेगा. लेकिन उन्होंने अपमान सहने से इनकार करने का साहस दिखाया. थाने चली गईं. यही इंसान के लक्षण हैं. गुस्सा आना चाहिए.

इस खबर से यह साबित होता है कि आज भी भारतीय सवर्ण समाज मे जातिवाद ,छुआछूत और भेदभाव भयंकर रूप में हावी है तथा चाहे कोई वैज्ञानिक ही क्यों न हो ,उसकी मानसिकता उतनी ही दूषित ,मैली ,कूपमण्डूक और अवैज्ञानिक ही बनी रहती है|दुःख की बात है कि आज भी एक मराठा नौकरानी को छद्म ब्राह्मणी बनकर रसोइये की नौकरी करनी पड़ती है और पकड़े जाने पर मुकदमा झेलना पड़ता है ,शर्म आती है ऐसी जातिवादी सोच की वैज्ञानिक पर और उस व्यवस्था पर जो ऐसे हास्यास्पद मामलों में मुकदमे दर्ज कर लेती है और उनकी जांच भी करती है ,दलितों के खिलाफ निकलने वाले मराठा मोर्चे इस अपमानजनक घटना पर मूक बने रहते है.

जाति छिपाने का आरोप नकारते हुए महिला रसोइए ने भी मौसम विभाग की वैज्ञानिक के ख़िलाफ़ केस किया।


पुणे स्थित भारतीय मौसम विभाग में वैज्ञानिक डॉ. मेधा विनायक खोले ने उनके घर में कार्यरत खाना बनाने वाली 60 वर्षीय निर्मला यादव पर धोखाधड़ी और धार्मिक भावना को आहत करने का केस दर्ज किया है।

मेधा के अनुसार, उन्हें अपने घर में गौरी गणपति और श्राद्ध का भोजन बनने के लिए हर साल ब्राह्मण और सुहागिन महिला की ज़रूरत होती है। मेधा पुणे के मौसम विभाग में डिप्टी डायरेक्टर जनरल के पद पर तैनात है।

एनडीटीवी इंडिया की ख़बर के अनुसार, मेधा का आरोप है कि साल 2016 में निर्मला ने ख़ुद को ब्राह्मण और सुहागिन बताकर ये नौकरी ली और उस समय उन्होंने अपना नाम निर्मला कुलकर्णी बताया था जबकि वह दूसरी जाति से हैं। डॉ. मेधा के मुताबिक इस साल 6 सितंबर को उनके गुरुजी ने बताया कि निर्मला ब्राह्मण नहीं हैं।

हिंदुस्तान टाइम्स की ख़बर के मुताबिक़, मेधा निर्मला की जाति जानने के लिए धयारी स्थित उनके घर तक गई और निर्मला के ब्राह्मण और सुहागिन न होने की बात मालूम पड़ने पर उन्होंने पुलिस में शिकायत करने का फैसला लिया।

एनडीटीवी इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, मेधा ने पुणे के सिंहगढ़ रोड पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई है. पुलिस ने निर्मला यादव के खिलाफ धारा 419 (पहचान छुपा कर धोखा देने), 352 (हमला या आपराधिक बल का प्रयोग), 504 (शांति का उल्लंघन करने के इरादे से एक व्यक्ति का अपमान करना) के तहत मामला दर्ज किया है।

दूसरी तरफ निर्मला का कहना है कि उन्होंने कोई चोरी नहीं की है। परिवार चलाने के लिए उन्हें यह झूठ बोलना पड़ा.

मेधा का कहना है कि निर्मला से पूछताछ करने पर निर्मला ने कहा कि आर्थिक समस्या होने के कारण उन्होंने ऐसा किया साथ ही निर्मला ने उन्हें गुस्से में गाली दी और मारने झपटीं. मेधा का कहना है कि उन्हें 15 से 20 हज़ार तक आर्थिक नुकसान भी हुआ है।

पुणे ब्राह्मण महासंघ ने इसे मालकिन और नौकरानी के बीच का विवाद बताते हुए कहा है कि इस मामले को जाति की दृष्टि से नहीं देखकर किसी की व्यक्तिगत भावना आहत होने के नज़रिये से देखना चाहिए. इस बीच राष्ट्रवादी युवती कांग्रेस ने डॉ. मेधा खोले के घर के सामने विरोध प्रदर्शन किया है।

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, निर्मला यादव ने इन सभी आरोपों को ख़ारिज किया है. निर्मला कहती हैं, ‘मैं कभी डॉ. मेधा के पास नौकरी के लिए नहीं गई वो ख़ुद यहां आई थीं और न ही मैंने कभी अपनी जाति छुपाई. मैंने उनके घर तीन उत्सवों पर खाना बनाया पर उन्होंने अभी तक कोई पैसे नहीं दिए. जब मैंने पैसे मांगे तो उन्होंने मुझे आठ हज़ार रुपये कुछ दिन में देने का वादा किया. मैंने उनकी बात पर विश्वास कर लिया क्योंकि वो बड़ी अधिकारी हैं. मैंने कभी नहीं छुपाया की मैं मराठा समुदाय से हूं और एक विधवा हूं।'

‘बीते 6 सितंबर को मेधा मेरे घर आईं और मुझ पर जाति छुपाने का आरोप लगाया. उन्होंने ये तक कहा कि मेरे कारण उनके भगवान अपवित्र हो गए हैं. उनकी शिकायत के बाद मैंने भी उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज की है।’

पुलिस के अनुसार डॉ. मेधा के ख़िलाफ़ धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचना), 506(आपराधिक धमकी देना) और 584 (जानबूछ का अपमान करना) के ठत एक ग़ैर-संज्ञेय अपराध दर्ज किया है।

निर्मला यादव के दामाद तुषार काकडे जो कि शिवसंग्राम संगठन के पदाधिकारी हैं साथ ही मराठा आंदोलन में एक सक्रिय सहभागी भी कहते हैं, ‘हम डॉ. खोले की कड़ी निंदा करते हैं जो कि एक वैज्ञानिक होते हुए भी कहती हैं कि उनकी भावना एक दूसरी जाति की विधवा महिला के हाथ से खाना बनवाने के कारण आहत हो गई है।'

महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति और सांभाजी ब्रिगेड ने भी प्रेस रिलीज़ निकालते हुए इस घटना की निंदा की और इसे क़ानून का उल्लंघन बताया।

सवाल ये है कि हमारे उत्तर प्रदेश में ऐसी बहुत सी विनायक खोले है, शायद हमें रोज ही दो चार होना पड़ता हो इन लोगों से  , तो हम स्वयं सोचे कि हम किस राह जा रहे हैं??????

एक कविता जो हमेशा हौसला देगी

एक कविता जो हमेशा हौसला देगी / Inspirational Poem


दोस्तों Poems में अद्भुत शक्ति होती है। जो काम एक Book नहीं करती वह काम महज एक कविता कर देती है। यूं तो हिन्दी साहित्य (Hindi Literature) काफी समृद्ध है, उसकी परम्परा, रीति, सौंदर्य, शास्त्र बहुत पुराना है।

 आपके लिए एक ऐसी कविता लाया हूं जो हमेशा हौसला देगी, जो मुर्दे में भी जान डालने वाली ताकत रखती है।

इसकी हर एक पंक्ति, हर एक शब्द और उसके पीछें छुपे भाव को एक बार मन में सोचे तो आप पाएंगे कि कविता को पढने से पहले आप कुछ और थे और बाद में कुछ और।

यह कविता सदी के महानतम कवियों में से एक पद्म भूषण श्री गोपालदास नीरज की कविता है।


नाम - गोपाल दास ‘नीरज‘


जन्मकाल- 4 जनवरी 1925 से अब तक (जीवित)

ग्राम- पुरावली, इटावा, उत्तरप्रदेश।

विशेष- गत 50 वर्षों से काव्य मंचों पर सक्रिय कविता पाठ। नीरज 20th सदी के प्रसिद्ध और सफलतम मंचीय कवियों में से एक माने जाते है।
बाॅलीवुड के कई शानदार नगमें गोपाल दास नीरज की देन है। इनमें कारवां गुजर गया, लिखे जो खत तुझे, ए भाई जरा देख के चलो, यही अपराध हर बार करता हूं, काल का पहिया घूमे रे भईया काफी लोकप्रिय नगमें है। नीरज की 15 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।

पुरस्कार- गोपालदास नीरज को पद्मश्री, पद्मभूषण, यशभारती समेत कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हो चुके है।


तो आईए आपको ज्यादा इंतजार न करवाते हुए उस कविता का दीदार करवाते है। इस कविता का शीर्षक है -

छिप छिप अश्रु बहाने वालों
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों!
मोती व्यर्थ लुटाने वालों!
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है? नयन सेज पर,
सोया हुआ आँख का पानी,
और टूटना है उसका ज्यों,
जागे कच्ची नींद जवानी,
गीली उमर बनाने वालों! डूबे बिना नहाने वालों!
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गई तो क्या है,
खुद ही हल हो गई समस्या,
आँसू गर नीलाम हुए तो,
समझो पूरी हुई तपस्या,
रूठे दिवस मनाने वालों! फटी क़मीज़ सिलाने वालों!
कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर,
केवल जिल्द बदलती पोथी।
जैसे रात उतार चाँदनी,
पहने सुबह धूप की धोती,
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चंद खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार कश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गंध फूल की,
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफ़रत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है! -

श्री गोपालदास नीरज Shree Gopal Das Neeraj

लग्नेश यदि दशम स्थान में हो तो क्या होगा आपके जीवन का कैरियर और कर्म

ज्योतिषीय ज्ञान
दशम स्थान गत लग्नेश


       कुंडली का सर्वाधिक पवित्र व महत्वपूर्ण स्थान है दशम स्थान | यदि किसी स्थान से दशम स्थान बली हो तो वह स्थान विशेष शाश्वत स्वाभाव का माना जाता है | उदाहरणार्थ दूसरे स्थान का विश्लेषण किया जाये तो दूसरे स्थान से दशम स्थान, अर्थात एकादश स्थान पर ध्यान देना चाहिए | यदि एकादश स्थान में शुभ गृह हों तथा एकादश स्थान बली हो तो दूसरे स्थान को स्वतः बल प्राप्त हो जाता है | इसी प्रक्रार यदि षष्ठ स्थान को जानना चाहें तो षष्ट स्थान से दशम स्थान अर्थात तृतीय स्थान को देखें, यदि तृतीय स्थान बली है तो यह कहा जा सकता है कि षष्ट स्थान स्वतः बली हो गया है तथा जातक रोगमुक्त जीवन प्राप्त करेगा |
       इसलिए लग्न का बलाबल दशम स्थान से देखना होगा | दशम भाव गत लग्नेश अद्वितीय बल प्राप्त करता है यह ऐसे व्यक्ति का सूचक है जो स्वाभाविक भाग्यवान है तथा जो शुभ गुणों से युक्त होगा व जीवन में उन्नति करेगा ऐसा व्यक्ति जो कुशल प्रशासक बनेगा | ऐसे व्यक्ति स्वाभाविक रूप से अपने पूर्वकर्मों के शुभ फलों का उपभोग करने ही इस जीवन में जन्म लेते हैं |
·         दशम स्थान गत लग्नेश भाव-संधि में नहीं होना चाहिए, ऐसा होने पर लग्न का बलक्षय होता है | इस संबंध में किसी भी केंद्र में लग्नेश भाव-संधि में स्थित नहीं होना चाहिए |  भाव-संधि दो प्रकार की होति है |
·         आरोह भाव-संधि
·         अवरोह भाव-संधि
जब गृह नवम स्थान से दशम स्थान में प्रवेश कर रहा हो, तो नवम भाव के उपरांत प्रथम भाव-संधि को आरोह भाव-संधि कहते हैं |
जब कोई गृह भाव-मध्य से अंतिम दस अंशो में जा रहा हो तो इसे अवरोह भाव-संधि कहते हैं |
शुब गृह आरोह भाव-संधि में तथा क्रूर गृह अवरोह भाव-संधि में स्थित होने चाहिए |
जब कोई गृह भावारम्भ बिंदु पर स्थित हो तो वह सर्वाधिक बली गृह बन जाता है | भावारम्भ स्वामी सर्वाधिक बली स्वामी है, वे स्थानविशेष के लिए सर्वप्रथम विश्वस्त उत्तरदायी गृह है | वे उस स्थान के अधिपति से भी अधिक मग्त्वापूर्ण होते हैं |
उदहारण
       यदि सप्तम स्थान मकर राशी का हो तथा भावारम्भ बिंदु पांच अंश व बयालीस मिनट पर हो, जो उत्तरा शाढा नक्षत्र (जिसका स्वामी सूर्य है)  में आता है, तो सप्तम स्थान का प्रथम दायित्व सूर्य पर होगा न कि शनि पर, हालाँकि वह राशीश है |
·         अतः सूर्य पर दुष्प्रभाव देखने होंगे तथा वैवाहिक विलम्ब अथवा विच्छेद के लिए सूर्य ही उत्तरदायी होगा |
यदि स्थानाधिपति तथा भावारम्भ नक्षत्रेश सम- संबंध अथवा संयोग बनायें तो यह अत्यंत शुभ माना जाता है |  यदि महादाशाधिपति अंतर्दाशाधिपति स्थानविशेष के भावारम्भ नक्षत्रेश से युत हो, तो उस स्थान के कार्कतवों का फलित होना सुनिश्चित है |
शुभ गृह होने से दशम स्थान गत लग्नेश आरोह के समय में अतिशुभ माना जाता है | क्रूर गृह होने पर यह अवरोहम में शुभ माना जायेगा तथा भाव-संधि बिंदु में प्रत्येक गृह चाहे वह शुभ हो या क्रूर, शुभ होगा | हालाँकि दशम स्थान में लग्नेश अत्यंत बली माना जाता है, परन्तु वह दिग्बलाहीन नहीं होना चाहिए |
लग्नेश होकर शुक्र दशम स्थान गत होने पर जातक को दीर्घ, परन्तु निस्सार जीवन प्रदान करेगा | ऐसा दीर्घ जीवन किस प्रयोजन का होगा यदि इसके सहायक अवयव ही विद्यमान न हों |
मंगल या सूर्य की लग्नेश होकर दशम स्थान में स्थिति व्यक्ति को शुभ गुण युक्त अलौकिक भाग्यशाली तथा जीवन में सद्गुणों का भोगने वाला बनाती है | दशम स्थान कर्म स्थान होने से इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि जातक इस संसार में  उच्चकोटि या महत्व के कर्म करने हेतु जन्मा है, अर्थात कर्मयोगी होगा |
जातक को अत्यंत शुभ पूर्व पुण्य प्राप्त होगा | इस उद्देश्य हेतु पंचम नवम तथा क्रमशः उनके स्वामी व प्रतिस्थायियों में अन्य सहायक तत्व होने चाहिए | व्यक्ति सदैव सफल होगा तथा दूसरों के  प्रति उसका व्यवहार अत्यंत सहायतापूर्ण होगा | व्यक्ति अल्पावस्था में ही जीविकोपार्जन प्रारंभ कर देगा |
जातक कि आर्थिक स्थिति सुद्रढ़ नहीं होगी, परन्तु उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होगा | इस हेतु लग्नेश का आरोग्यकारक चन्द्र से संबंध देखना होगा इससे व्यक्ति के जीवन में संभावित कष्टों कि मात्रा का भी अध्ययन किया जा सकता है |  व्यक्ति स्वनिर्मित व्यक्तित्वा तथा जीवन में स्वनिर्मित व्यक्ति तथा स्वावलंबी होगा |
दशम स्थान गत लग्नेश केन्द्रधिपति दोष से मुक्त होना चाहिए सामान्यतः लग्नेश पर कदापि केन्द्रधिपति दोष नहीं लगता क्योंकि वह एक केंद्र के साथ साथ एक कोण का भी स्वामी होता है | तो ये दोष कब लागू होगा ?
यह केवल तभी संभव है जब लगेंश किसी अन्य केंद्र का भी स्वामी हो, जो केवल ब्रहस्पति तथा बुध अर्थात मिथुनम, कन्या, धनु व मीन लग्न के लग्नेश होने पर लागू हो सकता है |
दशम स्थान गत लग्नेश दर्शाता है कि जातक के जनम के पश्चात् उसके पिता को अत्यधिक लाभ प्राप्त होगा | यह जातक के परिवार में एकमात्र पुत्र होने का भी सूचक है | इसके लिए लग्नेश की सूर्य से युति या द्रष्टि होनी चाहिए या नक्षत्रों का संबंध होने चाहिए |


यदि सूर्य लग्नेश होकर दशम स्थान में स्थित हो, तो जातक अपने पिता कि एकमात्र पुत्र संतति होगी |  यह जातक के अपने पारिवारिक पारम्परिक व्यवसाय में संलग्न होने का भी सूचक है

वो चिट्ठी जिसने गुरमीत सिंह उर्फ राम रहीम को पहुंचा दिया जेल



सन 2002 में एक साध्वी के द्वारा लिखी गई वो चिठ्ठी जिसके आधार पर बाबा राम रहीम पर कार्रवाई की गई ...नीचे पढ़ें!


2002 में एक साध्वी द्वारा लिखी गई चिट्ठी ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को यौनशोषण मामले में जेल भिजवा दिया। इस चिट्ठी के आधार पर हुई जांच ने आज गुरमीत राम रहीम को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया है। यही थी वह चिट्ठी जो साध्वी ने लिखी थी....


अगर नए कर्मचारी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो जैसे जवानी बीत रही है वैसे ही बुढापा भी बीतेगा।

✍पुरानी पेंशन

 *जवाब*  की  आशा के साथ


1. यह कि हमारे कर्मचारी संगठन पुरानी पेंशन बहाली 24 सूत्रीय मांगपत्र में एक नंबर पर क्यों नही रखते?

2. यहकि हमारे संगठन पुरानी पेंशन पर टेबल टाक क्यों नहीं करते ? यदि हुई है तो बताते क्यों नहीं?

           "  1 अप्रैल 2005 के बाद भर्ती होने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए पुरानी पेंशन बंद कर NPS  लागू कर दी गई ।
ज्ञातव्य है कि NPS  और ओपीएस अर्थात पुरानी पेंशन स्कीम है क्या?"


                          पुरानी पेंशन योजना

*1* पुरानी पेंशन योजना कर्मचारी द्वारा की गई सेवाओं के फलस्वरूप बिना किसी अंशदान के सरकार द्वारा प्रदान की जाती है।          

*2* पुरानी पेंशन योजना की कोई धनराशि शेयर मार्केट के अधीन नहीं होती है।

 *3*  पुरानी पेंशन योजना पर सरकार पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती है ।

 *4*  पुरानी पेंशन के  तहत धनराशि जीपीएफ कटौती को आवश्यकतानुसार कर्मचारी लोन के रूप में आहरित कर सकता है।

 *5* पुरानी पेंशन योजना में प्रतिवर्ष दो बार महंगाई भत्ता प्राप्त होता है।

 *6* पुरानी पेंशन योजना में पे कमीशनके अनुसार पेंशन वृद्धि होती है।

 *7*  पुरानी पेंशन में फंड मैनेजर की कोई व्यवस्था नहीं है।

 *8* पुरानी पेंशन में पारिवारिक पेंशन की व्यवस्था पूर्णतया सरकार द्वारा की जाती है।

 *9*  सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी का जो वेतन होता है उसका अर्ध वेतन  पेंशन के रूप में निर्धारित हो जाता है।

 *10* *सेवानिवृत्ति के समय 16 माह का वेतन कर्मचारी को ग्रेच्यूटी के रूप में प्रदान किया जाता है ।

 *11*  ग्रेच्युटी पर कोई टैक्स नहीं लगता है ।



                      * *नवीन पेंशन योजना** 

 *1* एनपीएस नवीन पेंशन योजना नई परिभाषित अंशदाई पेंशन योजना में कर्मचारी के वेतन एवं DA का 10% की कटौती की जाती है ।

 *2* नव परिभाषित पेंशन योजना शेयर मार्केट आधारित योजना है ।
*3*  NPS  में कोई निश्चित पेंशन धनराशि नहीं है अर्थात किसी माह 10000 किसी माह 50000 पेंशन मिल सकती है नहीं भी मिल सकती है।
 *4*  नवीन पेंशन योजना पूरी तरह शेयर मार्केट पर आधारित होने के कारण सरकार कोई सुरक्षा की गारंटी नहीं प्रदान करती है ।

 *5*  नवीन पेंशन योजना के तहत काटी गई धनराशि से कोई पैसा आहरित नहीं कर सकते हैं यदि कर सकते हैं तो तीन बार प्रक्रिया जटिल है।

 *6* नवीन पेंशन योजना में पेंशन प्लान लेने के बाद महंगाई भत्ता इत्यादि देय नहीं है ।

 *7* पेंशन योजना को तीन फण्ड मैनेजर sbi, uti,  lic ही संचालित करेंगे  सरकार से कोई मतलब न रहेगा ।
मैनजरों के  वेतन व भत्ते कर्मचारी द्वारा जमा की गई पेंशन हेतु धनराशि से काटे जाएंगे ।

 *8*  नवीन पेंशन योजना में पारिवारिक पेंशन आपके बचे हुए फंड के धन से ही उपलब्ध कराई जाती है ।

 *9* कर्मचारी 60 वर्ष या  50 वर्ष सरकार के अधीन हो कर  सेवा करेंगे और सरकार उन्हें NSDL प्राइवेट कंपनी के सहारे छोड़ कर अपना पल्ला झाड़ लेगी।



  स्वाभिमान सम्मान कर्मचारी का खतरे में है *बुढ़ापा खतरे* में है या कम शब्दों में कहें तो हमारा सेवानिवृत्ति के बाद भविष्य खतरे में है आज की संस्कृति में आने वाले समय की संस्कृति में जमीन आसमान का नहीं दिन रात का अंतर होगा आनेवाले समय में कोई किसी की सेवा नही करेगा इसलिए हमारा बुढ़ापा हमारा भविष्य खतरे में है
 वर्तमान में हमारी सैलरी पर्याप्त है फिर भी हम माह के अन्तमे  सैलरी की प्रतीक्षा करने लगते हैं अतः हम बुढ़ापे के लिए बचत नही कर पा रहे हैं।

 न कर पाएंगे रिटायरमेंट के बाद  न वेतन होगा न ही पेंशन होगी चिन्तन कीजिये जीवन का स्वरुप क्या होगा बुढ़ापा सम्मान से नही कटेगा दुर्दिन होंगे
जरा सोचिए
हमारी समस्याहै   लड़ेगा कौन?
हमारा दर्द दूर करेगा कौन ,?
दूसरा कोई नहीं हमे ही संघर्ष करना होगा

 पश्चिम बंगाल केरल व त्रिपुरा में लागू तो उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं?

 *6th पे कमीशन ने कहा था पेंशन कर्मचारी का लंबित वेतन है*
अतः आये सभी विभाग के कर्मचारियों का एक संगठन बनाकर  पुरानी पेंशन के लिए एक साथ संघर्ष करें ।


अभी नही तो कभी नहीं.....….......

गैस सिलेंडर लेने से पहले देख ले ये तारीख, ताकि आप रहे सुरक्षित

अपने परिवार की सुरक्षा के लिए 2 मिनिट का समय
निकाल कर इसे अवश्य पढ़े...!!!
L.P.G.गैस सिलेण्डर की भी "एक्सपायरी डेट" होती है।
एक्सपायरी डेट निकलने के बाद गैस सिलेण्डर को इस्तेमाल करना बम की तरह खरतनाक हो सकता है। आमतौर पर गैस सिलेण्डर की रिफील लेते समय उपभोक्ताओं का ध्यान इसके वजन और सील पर ही होता है।
उन्हें सिलेण्डर की एक्सपायरी डेट की जानकारी ही नहीं होती।
इसी का फायदा एलपीजी की आपूर्ति करने वाली कंपनियां उठाती हैं और धड़ल्ले से एक्पायरी डेट वाले सिलेण्डर रिफील कर हमारे घरों तक पहुंचाती हैं।
यहीं कारण है कि गैस सिलेण्डरों से हादसे होते हैं।

कैसे पता करें एक्सपायरी डेट->

सिलेण्डर के उपरी भाग पर उसे पकड़ने के लिए गोल रिंग होती है और इसके नीचे तीन पट्टियों में से एक पर काले रंग से सिलेण्डर की एक्सपायरी डेट अंकित होती है। इसके तहत अंग्रेजी में A, B, C तथा D अक्षर अंकित होते है तथा साथ में दो अंक लिखे होते हैं।
A अक्षर साल की पहली तिमाही (जनवरी से मार्च),
B साल की दूसरी तिमाही (अप्रेल से जून),
C साल की तीसरी तिमाही (जुलाई से सितम्बर)
तथा
D साल की चौथी तिमाही अर्थात अक्टूबर से दिसंबर को दर्शाते हैं।
इसके बाद लिखे हुए दो अंक एक्सपायरी वर्ष को संकेत करते हैं।


यानि यदि सिलेण्डर पर A 11 लिखा हुआ हो तो सिलेण्डर
की एक्सपायरी मार्च 2011 है। इस सिलेण्डर का "मार्च 2011" के बाद उपयोग करना खतरनाक होता है।
इस प्रकार के सिलेण्डर बम की तरह कभी भी फट सकते हैं।
ऐसी स्थिति में उपभोक्ताओं को चाहिए कि वे इस प्रकार के
एक्सपायर सिलेण्डरों को लेने से मना कर दें तथा आपूर्तिकर्त्ता एजेंसी को इस बारे में सूचित करें !



Note : कृप्या घरेलू सुरक्षा के मद्देनजर इस पोस्ट को अधिक-अधिक LIKE करे !!

मौलिक अधिकार बना निजता का अधिकार, इससे आपको क्या फर्क पड़ेगा



मौलिक अधिकार बना निजता का अधिकार, इससे आपको क्या फर्क पड़ेगा

भारतीय संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को कई मौलिक अधिकार दिए हैं। बहस इस बात को लेकर थी कि क्या निजता का अधिकार, मौलिक अधिकारों में आता है या नहीं। आखिरकार मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खेहर की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से इसे अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार माना है।



इस फैसले का आधार से कोई संबंध नहीं

सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का आधार से कोई संबंध नहीं है। 9 जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सिर्फ निजता के अधिकार पर अपना फैसला सुनाया है। इस बेंच में आधार पर कोई बात नहीं हुई। आधार निजता के अधिकार का हनन है या नहीं, इस पर तीन जजों की एक अन्य बेंच सुनवाई करेगी।



क्या हैं मौलिक अधिकार

भारतीय संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं। इन मौलिक अधिकार को व्यक्ति के विकास के लिए अहम माना जाता है।

1. समानता का अधिकार

2. स्वतंत्रता का अधिकार

3. शोषण के खिलाफ अधिकार

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

5. सांस्कृति और शिक्षा का अधिकार

6. संवैधानिक उपचार का अधिका



इन जजों ने सुनाया फैसला

इन नौ जजों की बेंच ने निजता को मौलिक अधिकार माना।

1. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर

2. जस्टिस चमलेश्वर

3. जस्टिस आरके अग्रवाल

4. जस्टिस एसए बोबड़े

5. जस्टिस एएम सापरे

6. जस्टिस आरएफ नरिमन

7. जस्टिस जीवाई चंद्रचूड़

8. जस्टिस संजय किशन कौल

9. जस्टिस एस एब्दुल नजीर





'सुप्रीम' फैसले का क्या फर्क पड़ेगा?

इस मामले में भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी से बात की गयी। उन्होंने बताया कि अब किसी मामले में अगर आधार से जुड़ी या कोई अन्य निजी जानकारी मांगता है तो आप आपत्ति जता सकते हैं। अगर आपको लगता है कि फलां व्यक्ति आपके निजी जीवन में दखल दे रहा है तो आप कोर्ट में जाकर याचिका पेश कर सकते हैं और कोर्ट उस पर सुनवाई करेगी। इसमें आंखों का रंग, डीएनए, ब्लड से जुड़ी जानकारी, फिंगर प्रिंट आदि सरकार अपने पास रख सकती है। सरकार हमें विश्वास दिलाएगी कि यह डाटा चोरी नहीं होगा और हमारी निजता भंग नहीं होगी।



सरकारी योजनाओं में निजी जानकारी का क्या?

सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए भी अब आधार जरूरी हो गया है। आप नाम, पता देने से तो इनकार नहीं कर सकते, लेकिन स्वामी के अनुसार अन्य जानकारियां देने से उपभोक्ता मना कर सकते हैं। विवाद की स्थिति में उपभोक्ता अदालत की शरण में जा सकता है और कह सकता है कि हमें विश्वास दिलाएं कि हम जो जानकारी दे रहे हैं वह किसी और के पास नहीं जाएगा।



मोबाइल फोन नंबर से आधार लिंक करना जरूरी है?

सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार बना दिया है तो ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि जिस तरह से निजी टेलिकॉम कंपनियां मोबाइल नंबर को आधार से लिंक कराने की बात कर रही हैं उसका क्या होगा। इस मामले में सुब्रह्मण्यम स्वामी में कहा कि जब आधार पर ही चुनौती हो जाएगी तो इन कंपनियों को भी रुकना पड़ेगा।



निजता की श्रेणी कैसे तय होगी?

निजता की श्रेणी को लेकर भी सवाल हैं। क्योंकि हो सकता है किसी व्यक्ति के लिए उसकी कोई खास जानकारी निजता की श्रेणी में आती हो, लेकिन दूसरों के लिए नहीं। ऐसे में निजता की श्रेणी कैसे तय हो। इस बारे में भी स्वामी से बात करते हुए कहा कि इसके बारे में भी अदालत ही तय करेगी।


  सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया है। नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मती से निजता के अधिकार पर यह फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि निजता एक मौलिक अधिकार है। निजता राइट टू लाइफ का हिस्‍सा है। निजता के हनन करने वाले कानून गलत हैं। कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह संविधान के आर्टिकल 21 (जीने के अधिकार) के तहत आता है। मामले में बहस के बाद कोर्ट ने गत दो अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब पांच न्यायाधीशों की पीठ आधार की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

यूं शुरू हुई निजता के अधिकार पर बहस
निजता के अधिकार पर बहस इसलिए शुरू हुई, क्योंकि आधार योजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की दलील है कि बायोमीट्रिक डाटा और सूचनाएं एकत्र करने से उनके निजता के अधिकार का हनन होता है। सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व फैसलों में आठ न्यायाधीशों और छह न्यायाधीशों की पीठ कह चुकी है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। ऐसे में भारत सरकार और याचिकाकर्ताओं ने निजता के अधिकार का मुद्दा बड़ी पीठ के द्वारा सुने जाने की अपील की थी। इस पर नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ गठित हुई। पीठ के अध्यक्ष प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर हैं। उनके अलावा पीठ में जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एएम सप्रे और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल है



विरोध में सरकार की दलीलें
-ये सन्निहित अधिकार है, लेकिन ये कॉमन लॉ में आता है।
-निजता हर मामले की परिस्थितियों पर तय होती है।
-संविधान निर्माताओं ने जानबूझकर इसे मौलिक अधिकारों में शामिल नहीं किया था।
-कोर्ट मौलिक अधिकार घोषित करता है, तो यह संविधान संशोधन होगा जिसका कोर्ट को अधिकार नहीं है।
-आंकड़े एकत्रित करना निजता के तहत नहीं आता।
-निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया, तो तकनीक का सहारा लेकर गुड गर्वनेंस के प्रयास रुक जाएंगे।

यह भी पढ़ेंः अब आधार कार्ड को विभिन्न योजनाओं से जोड़ने पर होगी SC में सुनवाई

समर्थन में याचिकाकर्ताओं की दलीलें
-निजता सम्मान से जीवन जीने के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।
-मुख्य अधिकार मौलिक अधिकार है, तो उसका हिस्सा भी माना जाएगा।
-कोर्ट कई फैसलों में निजता के अधिकार को मान्यता दे चुका है।
-निजता को स्वतंत्रता व जीवन के अधिकार से अलग करके नहीं देख सकते।
-अमेरिका और अन्य देशों में निजता को मौलिक अधिकार माना गया है।

होने जा रहा है अन्य पिछड़ा वर्ग में बदलाव





दैनिक जागरण संपादकीय             



केंद्र सरकार ने अब अन्य पिछड़े वर्ग में एक नया वर्ग बनाने की ठान ली है, क्योंकि केंद्र सरकार में बैठे लोगों को ऐसा लगता है कि जो आशा अन्य पिछड़े वर्ग के गठन के समय की गई थी वो अभी तक पूरी नहीं हुई है, क्योंकि अन्य पिछड़े वर्ग में सभी जातियों को बराबर माना गया है जबकि ऐसा नही है; अन्य पिछड़े वर्गों की कुछ जातियां दबंग है और उनका समाज में वर्चस्व है । जबकि कुछ जातियां इतनी अधिक पिछड़ी है कि आरक्षण कैसे मिलेगा वो भी शायद उन्हें नही पता है। ओबीसी में कुछ जातियों ने सरकारी नौकरियों में अपना वर्चस्व स्थापित किया जबकि कुछ जातियों का सरकार  में प्रितिनिधित्व शून्य है।

हालांकि कहने को तो ओबीसी में कई हजार जातियां है लेकिन ये भी वर्ग बिभाजित है। एक वर्ग अपने को दूसरे वर्ग से श्रेष्ठ मानता है ।

योगी का आश्वासन और शिक्षा मित्रों का आंदोलन वापिस





मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के बाद शिक्षामित्रों ने राजधानी में चल रहा अपना आंदोलन तीसरे दिन वापस ले लिया। मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि सरकार उनके मामले में गंभीरता से विचार कर रही है, इसलिए आंदोलन करने का कोई औचित्य नहीं बनता। इस पर शिक्षामित्रों के सभी संगठन आंदोलन स्थगित करने पर सहमत हो गए। साथ ही मुलाकात के बाद एनेक्सी से बाहर निकलकर सभी संगठनों के नेताओं ने कहा कि तीन दिन में सकारात्मक निर्णय न होने पर वे परिवार सहित राजधानी में धरना देंगे। इसके लिए पूरी तरह से सरकार जिम्मेदार होगी।
शिक्षामित्रों ने बुधवार को आंदोलन के तीसरे दिन भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात नहीं होने पर सामूहिक गिरफ्तारियां देकर जेल भरो आंदोलन की घोषणा की थी। पुलिस की ओर से शिक्षामित्रों की सामूहिक गिरफ्तारी के लिए तैयारी की गई। लक्ष्मण मेला मैदान से लेकर 1090 चौराहा तक बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया। उन्हें गिरफ्तार कर ले जाने के लिए सौ से अधिक बसों का इंतजाम भी किया गया।

लेकिन, दोपहर 2 बजे शिक्षामित्रों के प्रमुख संगठनों के नेताओं के आग्रह पर उन्हें  मुख्यमंत्री से बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया। मुख्यमंत्री से मुलाकात का समय मिलने के बाद शिक्षामित्रों ने गिरफ्तारी देने का मामला स्थगित कर दिया। शाम 4.40 बजे गाजी इमाम आला, दीनानाथ दीक्षित, जितेन्द्र शाही, रीना सिंह, शिवप्रसाद शुक्ल, जावेद और अवनीश कुमारसहित छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से एनेक्सी में मुख्यमंत्री मुलाकात हुई।

करीब 1.20 मिनट तक चली बातचीत में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकार से वार्ता के बावजूद राजधानी में धरना प्रदर्शन करने पर नाराजगी जाहिर की।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कौन हैं सर्वश्रेष्ठ?


ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कौन हैं सर्वश्रेष्ठ?


भारत में सदियों से वैष्णवों और शैव सम्प्रदाय को मानने वालों के बीच श्रेष्ठता का झगड़ा होता रहा है. वैसे ये सवाल किसी को भी जायज लग सकता है कि कहानियों और मिथकों के हिसाब से ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कौन सर्वश्रेष्ठ है?
आखिर विष्णु और महेश की पूजा क्यों होती है? ब्रह्मा की पूजा क्यों नहीं होती? और क्या रहस्य है शिवलिंग के पीछे?



शिव की श्रेष्ठता को लेकर कई कथाएं हैं। उनमें से एक कथा के अनुसार ब्रह्मा और विष्णु में एक बार श्रेष्ठता को लेकर झगड़ा हो गया। ब्रह्मा ने विष्णु से कहा,'मैं हर जीवित अस्तित्व का पिता हूं। इसमें तुम भी शामिल हो।'
विष्णु को यह अच्छा नहीं लगा. उन्होंने ब्रह्मा से कहा, ‘ तुम एक कमल के फूल में पैदा हुए थे, जो मेरी नाभि से निकला था। इस तरह तुम्हारा जनक मैं हुआ.’
ब्रह्मा पूरे संसार के जनक थे तो विष्णु उसके पालक. ब्रह्मा रचते ही नहीं तो विष्णु चलाते क्या और विष्णु संसार को चलाते पालते नहीं तो ब्रह्मा की बनाई दुनिया बेमतलब होती.
दोनों के बीच झगड़ा चल ही रहा था कि अचानक एक अग्नि स्तंभ अवतरित हुआ। वो अग्नि स्तंभ बेहद विशाल था। दोनों की आंखों उसके सिरों को नहीं देख पा रहीं थीं।

दोनों के बीच तय हुआ कि ब्रह्मा आग के इस खंभे का उपरी सिरा खोजेंगे और विष्णु निचला सिरा. ब्रह्मा ने हंस का रूप धरा और ऊपर उड़ चले अग्नि स्तंभ का ऊपरी सिरा देखने की मंशा से।
विष्णु ने वाराह का रुप धारण किया और धरती के नीचे अग्नि स्तंभ की बुनियाद खोजने निकल पड़े. दोनों में से कोई सफल नहीं हो सका. दोनों लौट कर आए। विष्णु ने मान लिया कि सिरा नहीं खोज पाए। यूं तो खोज ब्रह्मा भी नहीं पाए थे लेकिन उन्होंने कह दिया कि वो सिरा देख कर आए हैं.
ब्रह्मा का असत्य कहना था कि अग्नि स्तंभ फट पड़ा और उसमें से शिव प्रकट हुए। उन्होंने ब्रह्मा को झूठ बोलने के लिए डांटा और कहा कि वो इस कारण से बड़े नहीं हो सकते। उन्होंने विष्णु को सच स्वीकारने के कारण ब्रह्मा से बड़ा कहा।
ब्रह्मा और विष्णु दोनों ने मान लिया कि अग्नि स्तंभ से निकले शिव महादेव यानी किसी अन्य देव से बड़े हैं। वह उन दोनों से भी बड़े हैं क्योंकि दोनों मिल कर भी उनके आदि-अंत का पता नहीं लगा सके।


क्या ब्रह्मा की पूजा नहीं होने के कुछ और भी कारण हैं?

ब्रह्मा का चित्रण साधु की तरह होता है। विष्णु का राजा की तरह और शिव का संन्यासी की तरह। तीनों में से ब्रह्मा की पूजा नहीं होती। इसके दो कारण बताए गए हैं। एक आध्यात्मिक और दूसरा ऐतिहासिक।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ब्रह्मा जीवात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसी आत्मा जो सवालों के जवाब ढूंढती है, इसलिए पूजा के लायक नहीं है। विष्णु और शिव परमात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें सवालों के जवाब मिल चुके हैं.
जवाब पाने के बाद जहां विष्णु वैश्विक दुनिया में हिस्सेदारी रखते हैं वहीं शिव भौतिक दुनिया से परे हैं. इस वजह से विष्णु की आंखें हमेशा खुली रहती हैं जबकि शिव की आंखें बंद होती हैं।
ऐतिहासिक तौर पर ब्रह्मा कर्म कांड के शुरुआती दौर का प्रतिनिधित्व करते हैं. जब यज्ञ को पूरा करने के लिए तमाम तरह के कर्मकांड किए जाते थे.
लेकिन उपासना कांड (काल) में यज्ञ की महत्ता कम हो गई है और इसी के साथ ब्रह्मा भी गौण हो गए. शिव और विष्णु को अधिक तरजीह दी गई. शिव शिकारी के जीवन दर्शाते हैं. जबकि विष्णु गृहस्थ के जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं.
शिव और विष्णु की पूजा करते हुए हिंदू समाज अपने भीतर के द्वंद्व से निपटने में सफल रहा कि भौतिक जीवन को भोगा जाए या इससे दूर रहा जाए.
शिवलिंग निराकार का प्रतीक है लेकिन शिवलिंग की पूजा से जुड़ी हुई कोई कहानी है क्या?

लिंग पुराण में एक कथा है. भृगु मुनि कैलाश पर्वत पर गए ताकि शिव और शक्ति का अभिवादन किया जा सके। उन्होंने देखा कि शिव के ऊपर बैठी शक्ति संभोग में तल्लीन हैं। लेकिन भृगु मुनि के अचानक आने से भगवती शर्मिंदा हो गईं और अपना मुंह कमल से ढक लिया।
लेकिन शिव इससे अनजान मैथुनरत रहे. भृगु को एहसास हुआ कि शिव इतने भोले हैं कि लज्जा जैसी भावनाएं उनके दिमाग में आएंगी नहीं और वह सहवास करते रहेंगे.
भृगु ने संकेत के तौर पर शिव और शक्ति की पूजा करने का फैसला किया जिसमें लिंग योनि से घिरा हुआ है.

क्या है शिवरात्रि?



शिवरात्रि अथवा महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक का बहुत महत्त्व माना गया है और इस पर्व पर रुद्राभिषेक करने से सभी रोग और दोष समाप्त हो जाते हैं।



शिवरात्रि से आशय
शिवरात्रि वह रात्रि है जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है। भगवान शिव की अतिप्रिय रात्रि को शिव रात्रि कहा जाता है। शिव पुराण के ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए-

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥

शिव
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। अत: इसी समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। अत: इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का महत्त्व है। महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परमसुख, शान्ति एवं ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।

महाशिवरात्रि
किसी मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी 'शिवरात्रि' कही जाती है, किन्तु माघ (फाल्गुन, पूर्णिमान्त) की चतुर्दशी सबसे महत्त्वपूर्ण है और महाशिवरात्रि कहलाती है। *गरुड़पुराण[1], स्कन्दपुराण[2], पद्मपुराण[3], अग्निपुराण[4] आदि पुराणों में उसका वर्णन है। कहीं-कहीं वर्णनों में अन्तर है, किंतु प्रमुख बातें एक सी हैं। सभी में इसकी प्रशंसा की गई है। जब व्यक्ति उस दिन उपवास करके बिल्व पत्तियों से शिव की पूजा करता है और रात्रि भर 'जारण' (जागरण) करता है, शिव उसे नरक से बचाते हैं और आनन्द एवं मोक्ष प्रदान करते हैं और व्यक्ति स्वयं शिव हो जाता है। दान, यज्ञ, तप, तीर्थ यात्राएँ, व्रत इसके कोटि अंश के बराबर भी नहीं हैं।
गरुड़पुराण में कथा

गरुड़पुराण में इसकी गाथा है- आबू पर्वत पर निषादों का राजा सुन्दरसेनक था, जो एक दिन अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया। वह कोई पशु मार न सका और भूख-प्यास से व्याकुल वह गहन वन में तालाब के किनारे रात्रि भर जागता रहा। एक बिल्ब (बेल) के पेड़ के नीचे शिवलिंग था, अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने अनजाने में शिवलिंग पर गिरी बिल्व पत्तियाँ नीचे उतार लीं। अपने पैरों की धूल को स्वच्छ करने के लिए उसने तालाब से जल लेकर छिड़का और ऐसा करने से जल की बूँदें शिवलिंग पर गिरीं, उसका एक तीर भी उसके हाथ से शिवलिंग पर गिरा और उसे उठाने में उसे शिवलिंग के समक्ष झुकना पड़ा। इस प्रकार उसने अनजाने में ही शिवलिंग को नहलाया, छुआ और उसकी पूजा की और रात्रि भर जागता रहा। दूसरे दिन वह अपने घर लौट आया और पत्नी द्वारा दिया गया भोजन किया। आगे चलकर जब वह मरा और यमदूतों ने उसे पकड़ा तो शिव के सेवकों ने उनसे युद्ध किया उसे उनसे छीन लिया। वह पाप रहित हो गया और कुत्ते के साथ शिव का सेवक बना। इस प्रकार उसने अज्ञान में ही पुण्यफल प्राप्त किया। यदि इस प्रकार कोई भी व्यक्ति ज्ञान में करे तो वह अक्षय पुण्यफल प्राप्त करता है।
अग्निपुराण, स्कन्दपुराण में कथा

अग्निपुराण[5] में सुन्दरसेनक बहेलिया का उल्लेख हुआ है।[6] स्कन्दपुराण में जो कथा आयी है, वह लम्बी है- चण्ड नामक एक दुष्ट किरात था। वह जाल में मछलियाँ पकड़ता था और बहुत से पशुओं और पक्षियों को मारता था। उसकी पत्नी भी बड़ी निर्मम थी। इस प्रकार बहुत से वर्ष बीत गए। एक दिन वह पात्र में जल लेकर एक बिल्व पेड़ पर चढ़ गया और एक बनैले शूकर को मारने की इच्छा से रात्रि भर जागता रहा और नीचे बहुत सी पत्तियाँ फेंकता रहा। उसने पात्र के जल से अपना मुख धोया, जिससे नीचे के शिवलिंग पर जल गिर पड़ा। इस प्रकार उसने सभी विधियों से शिव की पूजा की, अर्थात् स्नापन किया (नहलाया), बेल की पत्तियाँ चढ़ायीं, रात्रि भर जागता रहा और उस दिन भूखा ही रहा। वह नीचे उतरा और एक तालाब के पास जाकर मछली पकड़ने लगा। वह उस रात्रि घर नहीं जा सका था, अत: उसकी पत्नी बिना अन्न-जल के पड़ी रही और चिन्ताग्रस्त हो उठी। प्रात:काल वह भोजन लेकर पहुँची, अपने पति को एक नदी के तट पर देख, भोजन को तट पर ही रख कर नदी को पार करने लगी। दोनों ने स्नान किया, किन्तु इसके पूर्व कि किरात भोजन के पास पहुँचे, एक कुत्ते ने भोजन चट कर लिया। पत्नी ने कुत्ते को मारना चाहा किन्तु पति ने ऐसा नहीं करने दिया, क्योंकि अब उसका हृदय पसीज चुका था। तब तक (अमावस्या का) मध्याह्न हो चुका था। शिव के दूत पति-पत्नी को लेने आ गए, क्योंकि किरात ने अनजाने में शिव की पूजा कर ली थी और दोनों ने चतुर्दशी पर उपवास किया था। दोनों शिवलोक को गए।
पद्मपुराण[7] में इसी प्रकार एक निषाद के विषय में उल्लेख हुआ है।


शिवरात्रि कैसे मनायें
तिथितत्त्व[8] के अनुसार इसमें उपवास प्रमुखता रखता है, उसमें शंकर के कथन को आधार माना गया है- 'मैं उस तिथि पर न तो स्नान, न वस्त्रों, न धूप, न पूजा, न पुष्पों से उतना प्रसन्न होता हूँ, जितना उपवास से।' किन्तु हेमाद्रि, माधव आदि ने उपवास, पूजा एवं जागरण तीनों को महत्ता दी है[9][10]
कालनिर्णय[11] में शिवरात्रि शब्द के विषय में एक लम्बा विवेचन उपस्थित किया गया है। क्या यह 'रूढ' है (यथा कोई विशिष्ट तिथि) या यह 'यौगिक' है[12], या 'लाक्षणिक'[13] या 'योगरूढ' है[14]। निष्कर्ष यह निकाला गया है कि यह शब्द पंकज के सदृश योगरूढ है जो कि पंक से अवश्य निकलता है[15], किन्तु वह केवल पंकज (कमल) से ही सम्बन्धित है (यहाँ रूढि या परम्परा) न कि मेढक से।
शिवरात्रि नित्य एवं काम्य दोनों है। यह नित्य इसलिए है कि इसके विषय में वचन है कि यदि मनुष्य इसे नहीं करता तो पापी होता है, 'वह व्यक्ति जो तीनों लोकों के स्वामी रुद्र की पूजा भक्ति से नहीं करता, वह सहस्त्र जन्मों में भ्रमित रहता है।' ऐसे भी वचन हैं कि यह व्रत प्रति वर्ष किया जाना चाहिए- 'हे महादेवी, पुरुष या पतिव्रता नारी को प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर भक्ति के साथ महादेव की पूजा करनी चाहिए।[16] यह व्रत काम्य भी है, क्योंकि इसके करने से फल भी मिलते हैं।
ईशानसंहिता[17] के मत से यह व्रत सभी प्रकार के मनुष्यों द्वारा सम्पादित हो सकता है- 'सभी मनुष्यों को, यहाँ तक की चाण्डालों को भी शिवरात्रि पापमुक्त करती है, आनन्द देती है और मुक्ति देती है।' ईशानसंहिता में व्यवस्था है- 'यदि विष्णु या शिव या किसी देव का भक्त शिवरात्रि का त्याग करता है तो वह अपनी पूजा (अपने आराध्य देवी की पूजा) के फलों को नष्ट कर देता है। जो इस व्रत को करता है उसे कुछ नियम मानने पड़ते हैं, यथा अहिंसा, सत्य, अक्रोध, ब्रह्मचर्य, दया, क्षमा का पालन करना होता है, उसे शांत मन, क्रोधहीन, तपस्वी, मत्सरहित होना चाहिए; इस व्रत का ज्ञान उसी को दिया जाना चाहिए जो गुरुपादानुरागी हो, यदि इसके अतिरिक्त किसी अन्य को यह दिया जाता है तो (ज्ञानदाता) नरक में पड़ता है।


इस व्रत का उचित काल है रात्रि, क्योंकि रात्रि में भूत, शक्तियाँ, शिव[18] घूमा करते हैं। अत: चतुर्दशी को उनकी पूजा होनी चाहिए[19]

स्कन्दपुराण[20] में आया है कि कृष्ण पक्ष की उस चतुर्दशी को उपवास करना चाहिए, वह तिथि सर्वोत्तम है और शिव से सायुज्य उत्पन्न करती है।[21] शिवरात्रि के लिए वही तिथि मान्य है जो उस काल से आच्छादित रहती है। उसी दिन व्रत करना चाहिए, जब कि चतुर्दशी अर्धरात्रि के पूर्व एवं उपरान्त भी रहे[22]। हेमाद्रि में आया है कि शिवरात्रि नाम वाली वह चतुर्दशी जो प्रदोष काल में रहती है, व्रत के लिए मान्य होनी चाहिए; उस तिथि पर उपवास करना चाहिए, क्योंकि रात्रि में जागरण करना होता है[23]}।

व्रत के लिए उचित दिन एवं काल के विषय में पर्याप्त विभेद हैं[24]। निर्णयामृत[25] ने 'प्रदोष' शब्द पर बल दिया है तथा अन्य ग्रंथों में 'निशीथ' एवं अर्धरात्रि पर बल दिया है।[26] यहाँ हम निर्णयकारों के शिरोमणि माधव के निर्णय प्रस्तुत कर रहे हैं। यदि चतुर्दशी प्रदोष-निशीथ व्यापिनी हो तो व्रत उसी दिन करना चाहिए। यदि वह दो दिनों वाली हो अर्थात् वह त्रयोदशी एवं अमावस्या दोनों से व्याप्त हो और वह दोनों दिन निशीथ काल तक रहने वाली हो या दोनों दिनों तक इस प्रकार न उपस्थित रहने वाली हो तो प्रदोष व्याप्त व्यापक निश्चय करने वाली होती है; जब चतुर्दशी दोनों दिनों तक प्रदोषव्यापिनी हो या दोनों दिनों तक उससे निर्मुक्त हो तो निशीथ में रहने वाली ही नियामक होती है; किंतु यदि वह दो दिनों तक रहकर केवल किसी से प्रत्येक दिन (प्रदोष या निशीथ) व्याप्त हो तो जया से संयुक्त अर्थात् त्रयोदशी तिथि नियामक होती है।[27]
प्राचीन कालों में शिवरात्रि के सम्पादन का विवरण गरुड़पुराण [28] में मिलता है- त्रयोदशी को शिव सम्मान करके व्रती को कुछ प्रतिबन्ध मानने चाहिए। उसे घोषित करना चाहिए- 'हे देव, मैं चतुर्दशी की रात्रि में जागरण करूँगा। मैं यथाशक्ति दान, तप एवं होम करूँगा। हे शम्भु, मैं चतुर्दशी को भोजन नहीं करूँगा, केवल दूसरे दिन खाऊँगा। हे शम्भु, आनन्द एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए आप मेरे आश्रय बनें।' व्रती को व्रत करके गुरु के पास पहुँचना चाहिए और पंचामृत के साथ पंचगव्य से लिंग को स्नान कराना चाहिए। उसे इस मंत्र का पाठ करना चाहिए- 'ओम नम: शिवाय'। चन्दन लेप से आरम्भ कर सभी उपचारों के साथ शिव पूजा करनी चाहिए और अग्नि में तिल, चावल एवं घृतयुक्त भात डालना चाहिए। इस होम के उपरान्त पूर्णाहुति[29] करनी चाहिए और (शिव विषयक) सुन्दर कथाएँ एवं गान सुनने चाहिए। व्रती को पुन: अर्धरात्रि, रात्रि के तीसरे पहर एवं चौथे पहर में आहुतियाँ डालनी चाहिए। सूर्योदय के लगभग उसे 'ओम नम: शिवाय' का मौन पाठ करते हुए शिव प्रार्थना करनी चाहिए- 'हे देव, आपके अनुग्रह से मैंने निर्विघ्न पूजा की है, हे लोकेश्वर, हे शिव, मुझे क्षमा करें। इस दिन जो भी पुण्य मैंने प्राप्त किया और मेरे द्वारा शिव को जो कुछ भी प्रदत्त हुआ है, आज मैंने आपकी कृपा से ही यह व्रत पूर्ण किया है; हे दयाशील, मुझ पर प्रसन्न हों, और अपने निवास को जाएँ; इसमें कोई संदेह नहीं कि केवल आपके दर्शन मात्र से मैं पवित्र हो चुका हूँ।' व्रती को चाहिए कि वह शिव भक्तों को भोजन दे, उन्हें वस्त्र, छत्र आदि दे- 'हे देवाधिदेव, सर्वपदार्थाधिपति, आप लोगों पर अनुग्रह करते हैं, मैंने जो कुछ श्रद्धा से दिया है उससे आप प्रसन्न हों।' इस प्रकार क्षमा मांग लेने पर व्रती को संकल्प करके 12 मासों की चतुर्दशी को जागरण करना चाहिए। व्यक्ति यह व्रत करके 12 ब्राह्मणों को खिलाकर तथा दीपदान करके स्वर्ग प्राप्त कर सकता है।
तिथितत्त्व में कुछ मनोरंजक विस्तार पाया जाता है[30]। लिंग स्नान रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध से, दूसरे में दही से, तीसरे में घृत से, चौथे में मधु से कराना चाहिए। चारों प्रहरों के मंत्र ये हैं- 'ह्रीं ईशानाय नम:', ह्रीं अधोराय नम:', 'ह्रीं वामदेवाय नम:' एवं 'ह्रीं सद्योजाताय नम:'। चारों प्रहरों में अर्ध्य के समय के मंत्र भी विभिन्न हैं। ऐसा भी प्रतिपादित है कि प्रथम प्रहर में गान एवं नृत्य होना चाहिए।
वर्षक्रियाकौमुदी[31] में आया है कि दूसरे, तीसरे एवं चौथे प्रहर में व्रती को पूजा, अर्ध्य, जप एवं (शिव संबंधी) कथा श्रवण करना चाहिए, स्तोत्रपाठ करना चाहिए एवं लेटकर प्रणाम करना चाहिए; प्रात:काल व्रती को अर्ध्यजल के साथ क्षमा मांगनी चाहिए। यदि माघ कृष्ण चतुर्दशी रविवार या मंगलवार को पड़े तो वह व्रत के लिए उत्तम होती है[32]
24, 14 या 12 वर्षों तक शिवरात्रि व्रत करने वाले को अवधि के उपरान्त उद्यापन करना पड़ता है। इस विषय में पुरुषार्थचिंतामणि [33] एवं व्रतराज [34] आदि ग्रंथों में अति विस्तार के साथ वर्णन है।
किसी भी शिवरात्रि के पारण के विषय में जितने वचन हैं, वे विवाद ग्रस्त हैं।[35] 'स्कन्द' के दो वचन ये हैं- 'जब कृष्णाष्टमी, स्कन्दषष्ठी एवं शिवरात्रि पूर्व एवं पश्चात् की तिथियों से संयुक्त की जाती है तो पूर्व वाली तिथि प्रतिपादित कृत्य के लिए मान्य होती है और पारण प्रतिपादित तिथि के अन्त में किया जाना चाहिए; चतुर्दशी को उपवास करके और उसी तिथि को वही व्यक्ति कर सकता है, जिसने लाखों अच्छे कर्म किये हों।' धर्मसिंधु[36] का निष्कर्ष यों हैं-
'यदि चतुर्दशी रात्रि के तीन प्रहरों के पूर्व ही समाप्त हो जाये तो पारण तिथि के अन्त में होना चाहिए; यदि वह तीन प्रहरों से आगे चली जाये तो उसके बीच में ही सूर्यादय के समय पारण करना चाहिए, ऐसा माधव आदि का मत है।' निर्णयसिंधु का मत यह है कि यदि चतुर्दशी तिथि रात्रि के तीन प्रहरों के पूर्व समाप्त हो जाये तो पारण चतुर्दशी के बीच में ही होना चाहिए न कि उसके अन्त में।

आजकल धर्मसिंधु में उल्लिखित विधि का पालन कदाचित ही कोई करता हो। उपवास किया जाता है, शिव की पूजा होती है और लोग शिव की कथाएँ सुनती हैं। सामान्य जन (कहीं-कहीं) ताम्रफल (बादाम), कमल पुष्प दल, अफीम के बीज, धतूरे आदि से युक्त या केवल भाँग का सेवन करते हैं। बहुत से शिव मन्दिरों में मूर्ति पर लगातार जलधारा से अभिषेक किया जाता है।
ऐतरेय ब्राह्मण[37] में प्रजापति के उस पाप का उल्लेख है, जो उन्होंने अपनी पुत्री के साथ किया था। वे मृग बन गये। देवों ने अपने भयंकर रूपों से रुद्र का निर्माण किया और उनसे मृग को फाड़ डालने को कहा। जब रुद्र ने मृग को विद्ध कर दिया तो वह (मृग) आकाश में चला गया। लोग इसे मृग (मृगशीर्ष) कहते हैं। रुद्र मृगव्याध हो गये और (प्रजापति की) कन्या रोहिणी बन गयी और तीर[38] तीन धारा वाले तारों के समान बन गया।
लिंगपुराण[39] में एक निषाद की कथा है। निषाद ने एक मृग, उसकी पत्नी और उनके बच्चों को मारने के क्रम में शिवरात्रि व्रत के सभी कृत्य अज्ञात रूप से कर डाले। वह एवं मृग के कुटुम्ब के लोग अंत में व्याध के तारे के साथ मृगशीर्ष नक्षत्र बन गये।
शिवरात्रि व्रत का लम्बा उल्लेख मध्यकालिक निबन्धों में हुआ है, यथा हेमाद्रि[40] आदि।[41]
शिव भक्तों का महापर्व
महाशिवरात्रि का पर्व शिवभक्तों द्वारा अत्यंत श्रद्धा व भक्ति से मनाया जाता है। यह त्योहार हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चौदहवीं तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह दिन फ़रवरी या मार्च में आता है। शिवरात्रि शिव भक्तों के लिए बहुत शुभ है। भक्तगण विशेष पूजा आयोजित करते हैं, विशेष ध्यान व नियमों का पालन करते हैं । इस विशेष दिन मंदिर शिव भक्तों से भरे रहते हैं, वे शिव के चरणों में प्रणाम करने को आतुर रहते हैं। मन्दिरों की सजावट देखते ही बनती है। हज़ारों भक्त इस दिन कावड़ में गंगा जल लाकर भगवान शिव को स्नान कराते हैं।

महादेव शिव के पूजन का महापर्व

भारतीय त्रिमूर्ति के अनुसार भगवान शिव प्रलय के प्रतीक हैं। त्रिर्मूति के दो और भगवान हैं, विष्णु तथा ब्रह्मा। शिव का चित्रांकन एक क्रुद्ध भाव द्वारा किया जाता है। ऐसा प्रतीकात्मक व्यक्ति भाव, जिसके मस्तक पर तीसरी आंख है; जो जैसे ही खुलती है, अग्नि का प्रवाह बहना प्रारम्भ हो जाता है। पुराणों के अनुसार जब कामदेव ने शिव के ध्यान को तोडने की चेष्टा की थी, तो शिव का तीसरा नेत्र खोलने से कामदेव जलकर राख हो गया था।


गर्तेश्वर महादेव मन्दिर, मथुरा
Garteshwar Mahadev Temple, Mathura
पौराणिक कथाएँ
महाशिवरात्रि के महत्त्व से संबंधित तीन कथाएँ इस पर्व से जुड़ी हैं:-

प्रथम कथा

एक बार माँ पार्वती ने शिव से पूछा कि कौन-सा व्रत उनको सर्वोत्तम भक्ति व पुण्य प्रदान कर सकता है? तब शिव ने स्वयं इस शुभ दिन के विषय में बताया था कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी की रात्रि को जो उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्ध्य तथा पुष्प आदि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना कि व्रत-उपवास से।

द्वितीय कथा

इसी दिन, भगवान विष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान आकार प्रकट हुआ था। ईशान संहिता के अनुसार – श्रीब्रह्मा व श्रीविष्णु को अपने अच्छे कर्मों का अभिमान हो गया। इससे दोनों में संघर्ष छिड़ गया। अपना महात्म्य व श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए दोनों आमादा हो उठे। तब शिव ने हस्तक्षेप करने का निश्चय किया, चूंकि वे इन दोनों देवताओं को यह आभास व विश्वास दिलाना चाहते थे कि जीवन भौतिक आकार-प्रकार से कहीं अधिक है। शिव एक अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तम्भ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। विष्णु और ब्रह्मा ने इस स्तम्भ के ओर-छोर को जानने का निश्चय किया। विष्णु नीचे पाताल की ओर इसे जानने गए और ब्रह्मा अपने हंस वाहन पर बैठ ऊपर गए। वर्षों यात्रा के बाद भी वे इसका आरंभ या अंत न जान सके। वे वापस आए, अब तक उनक क्रोध भी शांत हो चुका था तथा उन्हें भौतिक आकार की सीमाओं का ज्ञान मिल गया था। जब उन्होंने अपने अहम् को समर्पित कर दिया, तब शिव प्रकट हुए तथा सभी विषय वस्तुओं को पुनर्स्थापित किया। शिव का यह प्राकट्य फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को ही हुआ था। इसलिए इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं।

तृतीय कथा

इसी दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह हुआ था। भगवान शिव का ताण्डव और भगवती का लास्यनृत्य दोनों के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है, अन्यथा ताण्डव नृत्य से सृष्टि खण्ड- खण्ड हो जाये। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण दिन है।

महान अनुष्ठानों का दिन
शिव की जीवन शैली के अनुरूप, यह दिन संयम से मनाया जाता है। घरों में यह त्योहार संतुलित व मर्यादित रूप में मनाया जाता है। पंडित व पुरोहित शिवमंदिर में एकत्रित हो बड़े-बड़े अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। कुछ मुख्य अनुष्ठान है- रुद्राभिषेक, रुद्र महायज्ञ, रुद्र अष्टाध्यायी का पाठ, हवन, पूजन तथा बहुत प्रकार की अर्पण-अर्चना करना। इन्हें फूलों व शिव के एक हज़ार नामों के उच्चारण के साथ किया जाता है। इस धार्मिक कृत्य को लक्षार्चना या कोटि अर्चना कहा गया है। इन अर्चनाओं को उनकी गिनती के अनुसार किया जाता है। जैसे –

लक्ष: लाख बार
कोटि: एक करोड बार ।
ये पूजाएं देर दोपहर तक तथा पुन: रात्रि तक चलती हैं। इस दिन उपवास किये जाते हैं, जब उनकी नितांत आवश्यकता हो।

शिवरात्रि कैसे मनाएं?
रात्रि में उपवास करें। दिन में केवल फल और दूध पियें।
भगवान शिव की विस्तृत पूजा करें, रुद्राभिषेक करें तथा शिव के मन्त्र
देव-देव महादेव नीलकंठ नमोवस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तब॥
तब प्रसादाद् देवेश निर्विघ्न भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो माँ वै पीडांकुर्वन्तु नैव हि॥
का यथा शक्ति पाठ करें और शिव महिमा से युक्त भजन गांए।

‘ऊँ नम: शिवाय’ मन्त्र का उच्चारण जितनी बार हो सके, करें तथा मात्र शिवमूर्ति और भगवान शिव की लीलाओं का चिंतन करें।
रात्रि में चारों पहरों की पूजा में अभिषेक जल में पहले पहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घी और चौथे में शहद को मुख्यत: शामिल करना चाहिए।
शिवरात्रि या शिवचौदस नाम क्यों?

भूतेश्वर महादेव मन्दिर, मथुरा
Bhuteshwar Mahadev Temple, Mathura
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की महादशा यानी आधी रात के वक़्त भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे, ऐसा ईशान संहिता में कहा गया है। इसीलिए सामान्य जनों के द्वारा पूजनीय रूप में भगवान शिव के प्राकट्य समय यानी आधी रात में जब चौदस हो उसी दिन यह व्रत किया जाता है।

बेल (बिल्व) पत्र का महत्त्व
बेल (बिल्व) के पत्ते श्रीशिव को अत्यंत प्रिय हैं। शिव पुराण में एक शिकारी की कथा है। एक बार उसे जंगल में देर हो गयी, तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया। जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची- वह सारी रात एक-एक कर पत्ता तोडकर नीचे फेंकता जाएगा। कथानुसार, बेलवृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था। शिवलिंग पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख, शिव प्रसन्न हो उठे। जबकि शिकारी को अपने शुभ कृत्य का आभास ही नहीं था। शिव ने उसे उसकी इच्छापूर्ति का आशीर्वाद दिया। यह कथा न केवल यह बताती है कि शिव को कितनी आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है, बल्कि यह भी कि इस दिन शिव पूजन में बेल पत्र का कितना महत्त्व है।

शिवलिंग क्या है?
वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्माण्ड का अक्स ही लिंग है। इसीलिए इसका आदि और अन्त भी साधारण जनों की क्या बिसात, देवताओं के लिए भी अज्ञात है। सौरमण्डल के ग्रहों के घूमने की कक्षा ही शिव तन पर लिपटे सांप हैं। मुण्डकोपनिषद के कथानुसार सूर्य, चांद और अग्नि ही आपके तीन नेत्र हैं। बादलों के झुरमुट जटाएं, आकाश जल ही सिर पर स्थित गंगा और सारा ब्रह्माण्ड ही आपका शरीर है। शिव कभी गर्मी के आसमान (शून्य) की तरह कर्पूर गौर या चांदी की तरह दमकते, कभी सर्दी के आसमान की तरह मटमैले होने से राख भभूत लिपटे तन वाले हैं। यानी शिव सीधे-सीधे ब्रह्माण्ड या अनन्त प्रकृति की ही साक्षात मूर्ति हैं। मानवीकरण में वायु प्राण, दस दिशाएँ, पंचमुख महादेव के दस कान, हृदय सारा विश्व, सूर्य नाभि या केन्द्र और अमृत यानी जलयुक्त कमण्डलु हाथ में रहता है। लिंग शब्द का अर्थ चिह्न, निशानी या प्रतीक है। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है । धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा गया है।

शिवलिंग मंदिरों में बाहर क्यों?

जनसाधारण के देवता होने से, सबके लिए सदा गम्य या पहुँच में रहे, ऐसा मानकर ही यह स्थान तय किया गया है। ये अकेले देव हैं जो गर्भगृह में भक्तों को दूर से ही दर्शन देते हैं। इन्हें तो बच्चे-बूढे-जवान जो भी जाए छूकर, गले मिलकर या फिर पैरों में पड़कर अपना दुखड़ा सुना हल्के हो सकते हैं। भोग लगाने अर्पण करने के लिए कुछ न हो तो पत्ता-फूल, या अंजलि भर जल चढ़ाकर भी खुश किया जा सकता है।

जल क्यों चढ़ता है?

रचना या निर्माण का पहला पग बोना, सींचना या उडेलना हैं। बीज बोने के लिए गर्मी का ताप और जल की नमी की एक साथ जरुरत होती है। अत: आदिदेव शिव पर जीवन की आदिमूर्ति या पहली रचना, जल चढ़ाना ही नहीं लगातार अभिषेक करना अधिक महत्त्वपूर्ण होता जाता है। सृष्टि स्थिति संहार लगातार, बार–बार होते ही रहना प्रकृति का नियम है। अभिषेक का बहता जल चलती, जीती-जागती दुनिया का प्रतीक है।

ख़ास इच्छा
लिंग पुराण आदि ग्रन्थों में कहा गया है कि घर पर लकड़ी, धातु, मिट्टी, रेत, पारद, स्फटिक आदि के बने लिंग पर अर्चना की जा सकती है। अथवा साबुत बेल फल, आंवला, नारियल, सुपारी या आटे या मिट्टी की गोल पर घी चुपडकर अभिषेक पूजा कर सकते हैं। विशेष मनोरथ के तालिका दे रहे हैं कपड़े बांध कर या लपेटकर इनसे लिंग बना सकते हैं।

शिव महादेव क्यों ?
बड़ा या महान् बनने के लिए त्याग, तपस्या, धीरज, उदारता और सहनशक्ति की दरकार होती है। विष को अपने भीतर ही सहेजकर आश्रितों के लिए अमृत देने वाले होने से और विरोधों, विषमताओं को भी संतुलित रखते हुए एक परिवार बनाए रखने से शिव महादेव हैं। आपके समीप पार्वती का शेर, आपका बैल, शरीर के सांप, कुमार कार्तिकेय का मोर, गणेशजी का मूषक, विष की अग्नि और गंगा का जल, कभी पिनाकी धनुर्धर वीर तो कभी नरमुण्डधर कपाली, कहीं अर्धनारीश्वर तो कहीं महाकाली के पैरों में लुण्ठित, कभी मृड यानी सर्वधनी तो कभी दिगम्बर, निमार्णदेव भव और संहारदेव रुद्र, कभी भूतनाथ कभी विश्वनाथ आदि सब विरोधी बातों का जिनके प्रताप से एक जगह पावन संगम होता हो, वे ही तो देवों के देव महादेव हो सकते हैं।

शनि शिवपुत्र क्यों ?
संस्कृत शब्द शनि का अर्थ जीवन या जल और अशनि का अर्थ आसमानी बिजली या आग है। शनि की पूजा के वैदिक मन्त्र में वास्तव में गैस, द्रव और ठोस रूप में जल की तीनों अवस्थाओं की अनुकूलता की ही प्रार्थना है। खुद मूल रूप में जल होने से शनि का मानवीकरण पुराणों में शिवपुत्र या शिवदास के रूप में किया गया है। इसीलिए कहा जाता है कि शिव और शनि दोनों ही खुश हों तो निहाल करें और नाराज़ हों तो बेहाल करते हैं। सूर्य जीवन का आधार, सृष्टि स्थिति का मूल, वर्षा का कारण होने से पुराणों में खुद शिव या विष्णु का रूप माना गया है। निर्देश है कि शिव या विष्णु की पूजा, सूर्य पूजा के बिना अधूरी है। खुद सूर्य जलकारक दायक पोषक होने और शनि स्वयं जल रूप होने इस बात में कोई विरोध नहीं हैं।

शिव को पंचमुख क्यों ?
पांच तत्त्व ही पांच मुख हैं। योगशास्त्र में पंचतत्वों के रंग लाल, पीला, सफ़ेद, सांवला व काला बताए गए हैं। इनके नाम भी सद्योजात (जल), वामदेव (वायु), अघोर (आकाश), तत्पुरुष (अग्नि), ईशान (पृथ्वी) हैं। प्रकृति का मानवीकरण ही पंचमुख होने का आधार है।

बेरोजगारी के सवाल को समाप्त कर रहा हमारा धर्म और राजनीति

युवा बेरोजगारी से बिलख रहे और सरकार मन्दिर, हिन्दू-मुस्लिम और गाय में व्यस्त




हम, भारत के लोग सरकार क्यों चुनते है ? बार बार उम्मीद जगाते है कि कोई हमारे लिए काम करेगा।
देश के अंदर लोग जी रहे एक उम्मीद के साथ कि हमारा भी वक्त आएगा लेकिन तब क्या होता है जब हमारी उम्मीद तो टूटे ही हमारे सपने भी टूट जाएं। हमने चुना सरकार को कि वो हमारे लिए काम करे। देश का विकास करे।
आखिर देश का युवा अपने प्रधानमंत्री से क्या अपेक्षा रखता है कि वो युवाओं को रोजगार दे। लेकिन नही साहब! जब से प्रधानमंत्री क्या बने है सिर्फ जुमले ही याद रखते हैं। भूल जाते है हमारे प्रधानमंत्री जी कि अब वह विपक्ष में नही है उनकी जिम्मेदारी बनती है कि युवाओं के रोजगार के लिए कुछ करे ।
आखिर क्या किया अभी तक युवाओं के लिए?
1. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
2. मुद्रा बैंक योजना
3. मेक इन इंडिया



इन तीन नामी गिरामी योजनाओं के अतिरिक्त माननीय प्रधानमंत्री जी ने क्या किया जिससे कि वो युवाओं के सिरमौर बन जाते। जबाब है कुछ नही , क्योंकि उनके पास योजनाओं का तो पुलिंदा है साहब!  लेकिन परिणाम में जीरो रह गए। अच्छा! सबसे अच्छी बात ये है कि प्रधानमंत्री जी को रोजगार के विषय मे ज्यादा सोचने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि हम भी रोजगार के बारे में सोचना नही चाहते है। कई मेरे साथ के युवा जो कि पिछली सरकारों को अपनी बेरोजगारी के लिए कोसते रहे और उन्होंने भी 'अच्छे दिन आएंगे' ये सोचकर वर्तमान सरकार को चुन लिया लेकिन आज उनकी हालत देखता हूं तो बड़ी ही शर्म आती है ये सोचकर कि आखिर इस युवा का क्या कसूर था जो ये बार अपनी अच्छी जिंदगी और भविष्य के प्रति आशान्वित हो जाता है क्योंकि निराश में तो ये आत्महत्या ही करता है बस! इसके अतिरिक्त विकल्प छोड़ा ही कहा है सरकार ने??

युवा बेरोजगार या सरकार निक्कमी



जब लगा था (और उन लगने वालों में मैं भी शामिल था) कि  अब बाकई देश मे परिवर्तन होगा विकास की बाते होगी, विकास होगा, लोगों को रोजगार मिलेगा, ग़रीबो के कल्याण की योजनाएं चलाई जाएंगी, विकास सिर्फ कागजों में नही होगा वरन हकीकत में भी जमीन पर दिखाई देगा। लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ क्योंकि हम बंट गए .......

..... हम बंट गए हिन्दू  और मुसलमान में, हम बंट गए हिंदुस्तानी और  विदेशी में ,हम  बंट गए गौ रक्षक और गौ हन्ता में, हम बंट गए क़ब्रिस्तान और श्मशान में, हम बंट गए सवर्ण और पिछड़ों में ,हम बंट गए आरक्षित और अनारक्षित में, हम बंट गए  भक्त और विरोधी में......
क्यंकि हम बटना चाहते थे,  हमें किसी ने बांटा नही है हम तो बंटे हुए ही थे बस इसी बंटवारें का लाभ उठा लिया इन्होंने और जब से पद पर क्या पहुंचे तब से फिर रोजगार बढ़ाने के लिए प्रयास करना ही छोड़ दिया । और वो क्यों फालतू की टेंशन पालें जब काम हिन्दू और मुस्लिम करके ही हो रहा है, जब किसी देश के अंदर देशभक्ति वन्देमातरम बोलने से ही सिद्ध हो रही है और तिरंगा उठकर चलने मात्र से ही भक्ति देशभक्ति में बदल जा रही है, तो क्यों करें बेरोजगारी की बात क्योंकि बेरोजगारी की बात करना मात्र असहज करना ही है। मेहनत करनी पड़ती है बेरोजगारी पर बोलने के लिए , तमाम तरीके की जानकारी जुटानी पड़ती है, समाधान बताना पड़ता है; इसलिए पक्ष और विपक्ष - हालांकि जो है ही नहीं, दोनों तरफ के लोग इन आम आदमी की समस्याओं पर बात करने से गुरेज कर रहे हैं।



देश के करीब 65 करोड़ युवा हैं जो 35 वर्ष से कम आयु के हैं। इधर नए भारत में कोई 6 लाख 40 हजार गांव हैं और इनकी अधिकतर आबादी बेरोजगार है, कर्ज में डूबी है, भूमिहीन परिवार अधिक है, रहने को कच्चा मकान तक नहीं है। अधिकांश गांवों में सड़क, पीने का पानी, स्वास्थ्य सेवा, स्कूल और महिलाओं तक के लिए शौचालय तक नहीं है। लेकिन नया भारत एक बात में दुनिया का सबसे बड़ा अजूबा है और बेरोजगारों की फौज जल, जंगल और जमीन की चौकीदारी में गांवों से शहर और शहरों से राजधानी और राजधानी से लाल किले तक अफरा-तफरी में भटक रही है। सच यह है कि लाखों गांवों के करोड़ों युवा बेरोजगारी की महामारी के शिकार हैं और कोढ़ में खाज की तरह 1990 से लेकर अब तक या तो आत्महत्याएं कर रहे हैं या फिर अपराधी बन रहे हैं या फिर राजनीति में भाड़े के सैनिक बनकर असंतोष, अराजकता, विक्षोभ और लूटपाट करने वाली धर्म- जाति की वाहिनी तथा रक्षक दल बनाकर लोकतंत्र को, राष्ट्रवाद में बदल रहे हैं। अब ये बात भी सामने आ गई है कि 2014 में नए भारत का जनादेश बनाने वाली गांवों में युवा बेरोजगारों की फौज ही थी तो विकास और धर्म-जाति बचाने की रामदुहाई लेकर सोशियल मीडिया पर सपनों का तूफान मचा रही थी। ये इस विश्वास में थी कि कांग्रेस जाएगी तभी अच्छे दिन आएंगे।

लेकिन भारत के ग्रामीण युवा बेरोजगारों की आज की विडम्बना यह हैं कि नए भारत की नई सरकार- नोटबंदी, डिजिटल इण्डिया, मेक इन इण्डिया, जनधन खाता, स्वच्छता मिशन, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, कालाधन मिटाओ, भ्रष्टाचार हटाओ जैसी सैकड़ों योजनाओं तथा धूमधाम के बाद भी आज यह तक नहीं बता रही है कि विकास दर 7 प्रतिशत ले जाने के बाद भी गैर खेती किसानी क्षेत्र में भी एक प्रतिशत से ज्यादा नौकरियां क्यों नहीं दे पा रही है? अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद तो स्थिति ये हो रही है कि सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) में भारत के युवाओं का भविष्य अंधकार में फंसता जा रहा है और भारत में विदेशी पूंजी निवेश के अकाल से नए रोजगार खत्म हो रहे हैं तथा ग्रामीण युवाओं में भारी निराशा और उत्पात-उपद्रव बढ़ रहे हैं।

एक सरकारी जानकारी के अनुसार- अकेले राजस्थान में पिछले तीन साल में सबसे अधिक धरने, प्रदर्शन, सड़क बंदी पुलिस मुठभेड़ और पत्थरबाजी भी युवा बेरोजगारों ने ही किए हैं जबकि विपक्षी दलों की राजनीति सांप छछंदर हो गई है और सभी तरफ पुलिस, आबकारी, गौरक्षक और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का जलवा मीडिया में पसरा हुआ है। यहां तक कि स्थानीय टी.वी. चैनल और अखबार भी घर- गृहस्थी की वारदातों, थाना-कचहरी की रपट और पुलिस कांस्टेबलों के बयानों से ही भरे पड़े हैं।

अभी हमने राजस्थान की ग्रामीण पत्रकारिता के वरिष्ठ साथी बद्रीनारायण ढाका की महत्वपूर्ण शोधपूर्ण पुस्तक ‘ग्राम युवा’ पढ़ी तो पता चला कि हम पूरी तरह घाटे की खेती में, कर्ज के जाल में और शराब, चोरी डकैती और कम्पनियों की खुली लूट के बाजार में इतने बुरे फंस गए हैं कि युवाओं के रोजगार तो दुर्लभ है और युवा ग्रामीण आसपास के शहरों-कस्बों में आकर लूटपाट और मारधाड़ का कारोबार चला रहे हैं। बद्रीप्रसाद ढाका-70 पार के पत्रकार (संपादक-ग्राम बजट) हैं और शहरी अर्थशास्त्रीयों से अधिक गांवों और युवाओं की बेरोजगारी को लेकर बताते हैं चारों तरफ सामाजिक- आर्थिक असमानता बढ़ रही है, शहरी मीडिया एवं सोशियल मीडिया पर बाजार, सरकार और धर्म पाखण्ड का शोर फैल रहा है तो बेरोजगारों की भीड़ और आतंक ने गांवों में पंचायतीराज को निष्फल कर दिया है। जातीय गुटों और साम्प्रदायिक उन्माद से नया भारत- विकास की दौड़ में अस्थिर हो रहा है। एक भूचाल और निप्लव ग्रामीण युवा बेरोजगारों में छाया हुआ है। जम्मू कश्मीर, नक्सलवाद, दलित महिला आदिवासी उत्पीड़न दूरदराज के गांवों में बढ़ रहे हैं क्योंकि खेत किसान और मजदूर आपस में ही एक दूसरे को मार रहे हैं और मर रहे हैं।

हमें आश्चर्य तो ये लगता है कि नई राजनीति का नया भारत केवल शहरों तक सिमट गया है और बेरोजगारी की समस्या को कोई समझना ही नहीं चाहता और पुलिस, फौज सिपाही को ही आर्थिक बदहाली से निपटने की जिम्मेदारी अब दे दी गई है। गांवों में युवा बेरोजगारी का ऐसा हाल है कि विकास और सद्भाव का आधार ही मिट रहा है। हम आंकड़ों से सच्चाई की आंख में धूल नहीं झोंकना चाहते और केवल ध्यान दिलाना चाहते हैं कि भारत की बदहाली को जानने के लिए नए भारत के निर्माताओं को अपने पांवों तले की आग को देखना चाहिए। क्योंकि मोर नाचता है तो सुंदर लगता है, लेकिन जब वह अपने पांवों की तरफ देखता है, तो रोता है। ग्रामीण भारत के करोड़ों बेरोजगार अभी मुक्त बाजार और टेक्नॉलोजी की जादूगरी से अराजकता की तरफ जा रहे हैं क्योंकि गैर बराबरी कम नहीं हो रही है तथा भूखा नंगा आदमी गाय माता, गंगा माता और गीता माता की माला जपता हुआ तथा राष्ट्र ऋषियों के मंत्र और धर्म संसद के प्रवचन सुनते-सुनते पागल होता जा रहा है। अत: समय रहते गांवों के युवा बेरोजगारों तक कोई दाल रोटी का जुगाड़ करिए।


        कमोबेश समाचार चैनलों का भी यही हाल है प्राइम टाइम में बहस करते है कि गाय कैसे कट गई, मुस्लिम खतरे में है, हिन्दू आतंकवाद का साया बढ़ रहा देश मे,  धारा 370 की समाप्ति होनी चाहिए,  राम नही थे, या हनुमान जी का अद्भुत चमत्कार ,  अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता खतरे में, देश मे बढ़ रही कटरपंथिता, राम मंदिर बनेगा की नहीं, दलित बेटी का बलात्कार - हैवान घूम रहे सड़कों पर और न जाने क्या क्या.....क्या क्या.....
इनसे कोई पूछे कि अपने ये चैनल क्यों बनाया था तो कहेंगे कि सत्य दिखाने के लिये, लेकिन कर क्या रहें है सत्य की हत्या, पब्लिक को गुमराह कर रहे हैं। सच से मोड़कर असत्य विषयो की ओर अग्रसर करना ये पेड मीडिया की वास्तविकता है।
लेकिन सवाल उनसे है जो वास्तव में आम आदमी है, जिसका उन समस्यायों से रोज ही सामना होता है, आखिर वो इस बहस में क्यों उलझ गया है? अरे भाई युवा, बेरोजगार, गरीब कम से कम तुम ही आवाज उठाओ अपनी, अपने सच को लोगो तक पहुंचाओ, अपने दर्द को बयां करो, अपने नजदीकी नेता को सुनाओ अपनी आवाज संगठित होकर।
उठो..... आगे बढ़ो और सफलता प्राप्त करो।

जै हिन्द! जै भारत! 🙏

ये कैसी शिक्षा व्यवस्था है : बेसिक शिक्षा वाले टीचर अब पढ़ाएंगे इंटर कॉलेज और हाई स्कूल में


योग्यता कहाँ है साहब!

शिक्षा मित्रो को पहले हाई कोर्ट औऱ फिर सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्य ठहराकर शिक्षक के पद से हटा दिया। सरकार ने कहा कि अब योग्य लोग शिक्षक रखे जाएंगे। योग्यता अब परीक्षा से नापी जाएगी कि कौन कितना योग्य है। फिर एक दिन अखबार में खबर आती है कि इंटर कॉलेज और हाइस्कूल में शिक्षकों की बहुत कमी है और इस कमी को पूरा करने के लिए प्राइमरी स्कूल के मास्टर साहब और रिटायर्ड शिक्षकों को रखा जाएगा। जब प्राइमरी स्कूल का शिक्षक इंटरमीडिएट और हाइस्कूल वालो को पढ़ा सकता है तो फिर योग्यता की बात ही कहाँ रह गयी लेकिन फिर वही बात हो जाएगी कि योग्यता कहाँ है साहिब!!

क्या है ख़बर



क्यों कर रही है सरकार ऐसा


सरकार के पास विकल्पों की कमी नही होती है। फिर भी अगर सरकार की तरफ से ऐसा कदम उठाया गया है तो उसके पीछे की वजह देखने की जरूरत है । प्राइमरी स्कूल के टीचर इस समय वो लोग है जो कि वास्तव में इंटर मीडिएट में पढ़ाने की योग्यता रखते है। बीएड धारक को कायदे में प्राइमरी शिक्षा में नही होना चाहिए क्योंकि बीएड धारक शिक्षक हमेशा मन मे इस बात को महसूस करेंगे कि ये पोस्ट मेरे लायक नही है जबकि btc वाला तो सदैव ये जनता होगा कि मेरी पढ़ाई की डिग्री ही प्राइमरी में पढ़ाने के लिए है।

बीएड धारक इंटरमीडिएट में पढ़ा लेंगे इसमे कोई शक नही है तो फिर नए शिक्षकों को नियुक्ति देकर क्यों नही पढ़वाया जाता । इससे ये रोज रोज नियुक्ति और प्रतिनियुक्ति की झंझट भी खत्म हो जाएगी। लेकिन सरकार इस समय पैसे बचाने पर उतर आई है इसलिए इनका उद्देश्य येन केन प्रकारेण मामला सुलझाना है नियुक्ति की स्थायी विकल्प नही देना है बस! 

कई बेरोजगार युवा है नौकरी की तलाश में
कई लाख बीएड धारक इस समय बेरोजगार है और रोजगार की तलाश में है लेकिन इनकी समस्याएं जस की तस है। 


उत्तर प्रदेश वाणिज्य कर विभाग कर रहा है बम्पर भर्ती की तैयारी


जब से जीएसटी लागू हुआ है उत्तर प्रदेश वाणिज्य कर विभाग में परेशानियो का दौर थम नही रहा। काम की मात्रा बहुत अधिक बढ़ गयी है। इसलिए वाणिज्य कर विभाग ने ये तय किया है कि कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जाए जिससे काम का निस्तारण ठीक ढंग से व तुरंत हो सके ।
 इसके लिए वाणिज्य कर के सभी कार्यालयों में 2019 तक होने वाली रिक्तियों को भी ध्यान में रखकर ख़ाली पदों का ब्यौरा मांगा गया है। इसमें आवश्यकता अनुसार और काम के अनुसार पदों का ब्योरा मांगा गया है जिससे नये पदों का सृजन किया जा सके।

ब्यौरा मिलने के बाद नए पदों का सृजन भी होगा और कुल पदों की रिक्तियों का अधियाचन यूपीएसएसएससी को भेज दिया जायेगा।
इन पदों में बाबुओं के पद, कंप्यूटर ऑपरेटर, आशुलिपिक, वाहन चालकों के पद शामिल है। इसके अलावा अधिकारीयों की भर्ती भी होनी है। जिसके लिए लोक सेवा आयोग को अधियाचन भेजा जाएगा।

सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले भाई बहनों से निवेदन  है कि अब जब भी यूपीएसएसएससी में पद निकलें तो कृपया पूरा जोर लगा दे और सिलेक्शन ले ले। क्योंकि काल का कोई भरोसा नहीं।

धन्यवाद! जय हिंद!🙏

शिक्षा मित्रों को मिला अन्ना हजारे का साथ



समायोजन रद्द होने से नाराज शिक्षामित्र 25 अगस्त को दिल्ली में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करेंगे। उत्तर प्रदेश दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने कहा कि प्रख्यात गांधीवादी व समाजसेवी अन्ना हजारे उनके प्रदर्शन का नेतृत्व करेंगे। इसके लिए हजारे से बात भी की जा चुकी है।


रविवार को ग्लोब पार्क में हुई संघ की  प्रांतीय कमेटी की बैठक में यादव ने कहा कि शिक्षामित्रों को राहत देने के लिए सरकार अध्यादेश लाए। इससे कम उन्हें कुछ भी मंजूर नहीं।

शिक्षामित्र 15 अगस्त को पूरे प्रदेश में मौन जुलूस निकालेंगे, 16 अगस्त को भाजपा के सांसद, मंत्री और विधायकों को अध्यादेश लाने के लिए ज्ञापन देंगे और 17 अगस्त से ‘संकल्प पत्र पूरा करो, शिक्षामित्रों के लिए अध्यादेश लाओ’ नारे के साथ प्रदेश के सभी जिलों में भाजपा कार्यालयों पर क्रमिक अनशन करेंगे।

जब से ये खबर  आई तब से सरकार में हड़कम्प मच गया है।
उम्मीद तो सकारात्मक ही है। परंतु आगे देखिए क्या होता है इस कदम का परिणाम.......

(सूत्र : अमर उजाला समाचार पत्र)

जल्द ही आ सकती है UPSSC के बारे में कोई good News

अगर आप उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षाएं दे चुके है और पिछले कई दिन से आ रही खबरों से चिंतित है या अपने परीक्षा परिणाम को लेकर आशंकित है तो आपकी आंशकाओं का बादल समाप्त होने वाला है।
इसी महीने तक अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में नियुक्ति हो सकती है। 13 अगस्त की अमर उजाला की खबर कुछ यूं ही बयान कर रही है।
नीचे दिए गए कटिंग को पढ़ कर देखिए।

ये तो स्पष्ट है कि पिछली सपा सरकार के दौरान यू पी पी एस सी को कैबिनेट के निर्णय के आधार पर बनाया गया। यू पी पी एस सी के लिए सारे निर्णय जल्दबाज़ी में लिए गए। न तो आयोग के पास पर्याप्त मेंबर ही थे और न ही पर्याप्त स्टाफ था। आयोग के पास अपना खुद का भवन भी नही था।
एक एक परीक्षा का अंतिम परिणाम निकालने में बहुत ही ज्यादा समय लगा। कई चरणों मे साक्षात्कार हुए। 
परिणाम में भी कई त्रुटियां हुई। इसलिए इस भ्रष्टाचार की रोकथाम जरूरी थी।

आशा है कि अब सकारात्मक निर्णय लिए जाएंगे और उनका प्रभाव अभ्यर्थियों पर भी दिखाई देगा।
जय हिन्द! 🙏

ख़ुश खबरी : उत्तर प्रदेश वन विभाग में होने वाली है भर्ती

अगर आपको वन विभाग में काम करने की तमन्ना है तो तैयार हो जाइए । उत्तर प्रदेश वन विभाग बहुत जल्दी रेंजर की 186 पद और 2750 फील्ड अफसर की भर्ती करने जा रहा है। इसके लिए उ0 प्र0 लोक सेवा आयोग को सूचना भेज दी गयी है।
दोस्तों! तो फिर अपनी किताबें उठा लीजिये और मन लगा कर तैयारी में उठ जाईये।

समायोजित शिक्षामित्रों को 25 जुलाई तक का वेतन देगी सरकार, मानदेय पर अभी भी संशय

समायोजित शिक्षामित्रों को 25 जुलाई तक का वेतन देगी सरकार, मानदेय पर अभी भी संशय


सहायक अध्यापक पद पर समायोजित किए गए शिक्षामित्रों को 25 जुलाई तक का समायोजित पद का वेतन दिया जाएगा। इस बाबत बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव संजय सिन्हा ने आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं।
इस आदेश के बाद यह तो साफ हो गया है कि 25 जुलाई के बाद से शिक्षामित्रों को मानदेय से ही संतोष करना पड़ेगा लेकिन मानदेय कितना होगा, यह विभाग ने अब तक स्पष्ट नहीं किया है। हालांकि समायोजन से पूर्व शिक्षामित्रों को 3500 रुपये मानदेय दिया जा रहा था।

प्रदेश में तकरीबन एक लाख 37 हजार शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत इन सभी शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद समायोजन निरस्त कर दिया गया है।

न्यायालय के आदेश के बाद तमाम जनपदों से उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव को पत्र भेजकर पूछा गया था कि शिक्षामित्रों को समायोजित पद का वेतन देना है या नहीं और देना है तो किस तिथि तक वेतन का भुगतान होना है।


मानदेय पर अभी भी स्थिति साफ नहीं

मामले में सचिव संजय सिन्हा ने स्थिति स्पष्ट करते हुए दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 25 जुलाई को दोपहर के वक्त आया था। इसलिए सहायक अध्यापक पद पर समायोजित शिक्षामित्रों को 25 जुलाई तक का वेतन भुगतान किया जा सकता है।

सचिव ने सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों और बेसिक शिक्षा के वित्त एवं लेखाधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं कि वेतन भुगतान अविलंब कर दिया जाएगा।

हालांकि इस बाबत स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है कि शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद का वेतन भुगतान बंद होने के बाद कितना मानदेय मिलेगा। हालांकि समायोजन से पूर्व उन्हें प्रतिमाह 3500 रुपये मानदेय के रूप में दिए जा रहे थे।

लव जिहाद का वो मामला जो पहुंच गया सुप्रीम कोर्ट तक

केरल:  लव जिहाद Vs प्रेम विवाह

दो लोगों को भारत  सिर्फ अपनी मर्जी के आधार पर शादी करना कितना मुश्किल है ये तो सिर्फ वही जानता है जो इस प्रेम और प्रेम विवाह के दौर से गुजरा हो।

ताजा मामला केरल का है जहां पर प्रेमी जोड़े में धर्म का अंतर था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुच गया इस बात की जांच करने के लिए कि ये मामला कहीं लव जिहाद का तो नही है क्योंकि अगर ऐसा होता है तो इससे ज्यादा गन्दी और घटिया बात और कोई हो नही सकती है।

इस खबर को पढ़ कर आप जानेंगे कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर क्या कहा।


चीन उतर आया सफेद झूठ पर

इस बात से तो आप वाकिफ ही होंगे कि चीन और भारत के बीच पिछले कई दिनों से दोकालम क्षेत्र पर तना तनी चल रही है । बात यूँ है कि जब चीन की चाल नही चली तो उसने ये कहना शुरू कर दिया कि भूटान ने दोकालम को चीन का क्षेत्र में लिया है।

मज़बूर होकर भूटान को इस खबर का खंडन करना पड़ा।

मांगने गए थे नौकरी और मिली लाठियां


बेरोजगारी का आलम उत्तर प्रदेश में ये हो गया है कि पढ़े लिखे बेरोजगारों को नौकरी तो मिलने से रही उल्टा लाठियां और डंडे खाने पड़ रहे हैं।
11 अगस्त 2017 के दैनिक भास्कर की खबर इसका सच बयान कर रही है।


इन अभ्यर्थियों का कसूर मात्र इतना ही था कि इन्होंने अपने आपको नौकरी के काबिल समझ लिया। महिलाओं को भी नही बख्शा गया। टेट पास होना और बीएड धारक होना ही नौकरी का मात्र विकल्प नही है।
शिक्षक बनने के लिए अब लाठी भी खाना पड़ेगा।

क्यों हो परेशान जब आप कम सकते हो ऑनलाइन घर बैठे कोई मार्केटिंग नहीं कोई इन्वेस्टमेंट नही

हम बात कर रहे हैं घर बैठे कमाने के बारे में | हो सकता ये आपको आश्चर्य जनक लगे लेकिन इसमें कोई नयी बात नहीं है दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं...

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