बेरोजगारी के सवाल को समाप्त कर रहा हमारा धर्म और राजनीति

युवा बेरोजगारी से बिलख रहे और सरकार मन्दिर, हिन्दू-मुस्लिम और गाय में व्यस्त




हम, भारत के लोग सरकार क्यों चुनते है ? बार बार उम्मीद जगाते है कि कोई हमारे लिए काम करेगा।
देश के अंदर लोग जी रहे एक उम्मीद के साथ कि हमारा भी वक्त आएगा लेकिन तब क्या होता है जब हमारी उम्मीद तो टूटे ही हमारे सपने भी टूट जाएं। हमने चुना सरकार को कि वो हमारे लिए काम करे। देश का विकास करे।
आखिर देश का युवा अपने प्रधानमंत्री से क्या अपेक्षा रखता है कि वो युवाओं को रोजगार दे। लेकिन नही साहब! जब से प्रधानमंत्री क्या बने है सिर्फ जुमले ही याद रखते हैं। भूल जाते है हमारे प्रधानमंत्री जी कि अब वह विपक्ष में नही है उनकी जिम्मेदारी बनती है कि युवाओं के रोजगार के लिए कुछ करे ।
आखिर क्या किया अभी तक युवाओं के लिए?
1. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
2. मुद्रा बैंक योजना
3. मेक इन इंडिया



इन तीन नामी गिरामी योजनाओं के अतिरिक्त माननीय प्रधानमंत्री जी ने क्या किया जिससे कि वो युवाओं के सिरमौर बन जाते। जबाब है कुछ नही , क्योंकि उनके पास योजनाओं का तो पुलिंदा है साहब!  लेकिन परिणाम में जीरो रह गए। अच्छा! सबसे अच्छी बात ये है कि प्रधानमंत्री जी को रोजगार के विषय मे ज्यादा सोचने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि हम भी रोजगार के बारे में सोचना नही चाहते है। कई मेरे साथ के युवा जो कि पिछली सरकारों को अपनी बेरोजगारी के लिए कोसते रहे और उन्होंने भी 'अच्छे दिन आएंगे' ये सोचकर वर्तमान सरकार को चुन लिया लेकिन आज उनकी हालत देखता हूं तो बड़ी ही शर्म आती है ये सोचकर कि आखिर इस युवा का क्या कसूर था जो ये बार अपनी अच्छी जिंदगी और भविष्य के प्रति आशान्वित हो जाता है क्योंकि निराश में तो ये आत्महत्या ही करता है बस! इसके अतिरिक्त विकल्प छोड़ा ही कहा है सरकार ने??

युवा बेरोजगार या सरकार निक्कमी



जब लगा था (और उन लगने वालों में मैं भी शामिल था) कि  अब बाकई देश मे परिवर्तन होगा विकास की बाते होगी, विकास होगा, लोगों को रोजगार मिलेगा, ग़रीबो के कल्याण की योजनाएं चलाई जाएंगी, विकास सिर्फ कागजों में नही होगा वरन हकीकत में भी जमीन पर दिखाई देगा। लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ क्योंकि हम बंट गए .......

..... हम बंट गए हिन्दू  और मुसलमान में, हम बंट गए हिंदुस्तानी और  विदेशी में ,हम  बंट गए गौ रक्षक और गौ हन्ता में, हम बंट गए क़ब्रिस्तान और श्मशान में, हम बंट गए सवर्ण और पिछड़ों में ,हम बंट गए आरक्षित और अनारक्षित में, हम बंट गए  भक्त और विरोधी में......
क्यंकि हम बटना चाहते थे,  हमें किसी ने बांटा नही है हम तो बंटे हुए ही थे बस इसी बंटवारें का लाभ उठा लिया इन्होंने और जब से पद पर क्या पहुंचे तब से फिर रोजगार बढ़ाने के लिए प्रयास करना ही छोड़ दिया । और वो क्यों फालतू की टेंशन पालें जब काम हिन्दू और मुस्लिम करके ही हो रहा है, जब किसी देश के अंदर देशभक्ति वन्देमातरम बोलने से ही सिद्ध हो रही है और तिरंगा उठकर चलने मात्र से ही भक्ति देशभक्ति में बदल जा रही है, तो क्यों करें बेरोजगारी की बात क्योंकि बेरोजगारी की बात करना मात्र असहज करना ही है। मेहनत करनी पड़ती है बेरोजगारी पर बोलने के लिए , तमाम तरीके की जानकारी जुटानी पड़ती है, समाधान बताना पड़ता है; इसलिए पक्ष और विपक्ष - हालांकि जो है ही नहीं, दोनों तरफ के लोग इन आम आदमी की समस्याओं पर बात करने से गुरेज कर रहे हैं।



देश के करीब 65 करोड़ युवा हैं जो 35 वर्ष से कम आयु के हैं। इधर नए भारत में कोई 6 लाख 40 हजार गांव हैं और इनकी अधिकतर आबादी बेरोजगार है, कर्ज में डूबी है, भूमिहीन परिवार अधिक है, रहने को कच्चा मकान तक नहीं है। अधिकांश गांवों में सड़क, पीने का पानी, स्वास्थ्य सेवा, स्कूल और महिलाओं तक के लिए शौचालय तक नहीं है। लेकिन नया भारत एक बात में दुनिया का सबसे बड़ा अजूबा है और बेरोजगारों की फौज जल, जंगल और जमीन की चौकीदारी में गांवों से शहर और शहरों से राजधानी और राजधानी से लाल किले तक अफरा-तफरी में भटक रही है। सच यह है कि लाखों गांवों के करोड़ों युवा बेरोजगारी की महामारी के शिकार हैं और कोढ़ में खाज की तरह 1990 से लेकर अब तक या तो आत्महत्याएं कर रहे हैं या फिर अपराधी बन रहे हैं या फिर राजनीति में भाड़े के सैनिक बनकर असंतोष, अराजकता, विक्षोभ और लूटपाट करने वाली धर्म- जाति की वाहिनी तथा रक्षक दल बनाकर लोकतंत्र को, राष्ट्रवाद में बदल रहे हैं। अब ये बात भी सामने आ गई है कि 2014 में नए भारत का जनादेश बनाने वाली गांवों में युवा बेरोजगारों की फौज ही थी तो विकास और धर्म-जाति बचाने की रामदुहाई लेकर सोशियल मीडिया पर सपनों का तूफान मचा रही थी। ये इस विश्वास में थी कि कांग्रेस जाएगी तभी अच्छे दिन आएंगे।

लेकिन भारत के ग्रामीण युवा बेरोजगारों की आज की विडम्बना यह हैं कि नए भारत की नई सरकार- नोटबंदी, डिजिटल इण्डिया, मेक इन इण्डिया, जनधन खाता, स्वच्छता मिशन, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, कालाधन मिटाओ, भ्रष्टाचार हटाओ जैसी सैकड़ों योजनाओं तथा धूमधाम के बाद भी आज यह तक नहीं बता रही है कि विकास दर 7 प्रतिशत ले जाने के बाद भी गैर खेती किसानी क्षेत्र में भी एक प्रतिशत से ज्यादा नौकरियां क्यों नहीं दे पा रही है? अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद तो स्थिति ये हो रही है कि सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) में भारत के युवाओं का भविष्य अंधकार में फंसता जा रहा है और भारत में विदेशी पूंजी निवेश के अकाल से नए रोजगार खत्म हो रहे हैं तथा ग्रामीण युवाओं में भारी निराशा और उत्पात-उपद्रव बढ़ रहे हैं।

एक सरकारी जानकारी के अनुसार- अकेले राजस्थान में पिछले तीन साल में सबसे अधिक धरने, प्रदर्शन, सड़क बंदी पुलिस मुठभेड़ और पत्थरबाजी भी युवा बेरोजगारों ने ही किए हैं जबकि विपक्षी दलों की राजनीति सांप छछंदर हो गई है और सभी तरफ पुलिस, आबकारी, गौरक्षक और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का जलवा मीडिया में पसरा हुआ है। यहां तक कि स्थानीय टी.वी. चैनल और अखबार भी घर- गृहस्थी की वारदातों, थाना-कचहरी की रपट और पुलिस कांस्टेबलों के बयानों से ही भरे पड़े हैं।

अभी हमने राजस्थान की ग्रामीण पत्रकारिता के वरिष्ठ साथी बद्रीनारायण ढाका की महत्वपूर्ण शोधपूर्ण पुस्तक ‘ग्राम युवा’ पढ़ी तो पता चला कि हम पूरी तरह घाटे की खेती में, कर्ज के जाल में और शराब, चोरी डकैती और कम्पनियों की खुली लूट के बाजार में इतने बुरे फंस गए हैं कि युवाओं के रोजगार तो दुर्लभ है और युवा ग्रामीण आसपास के शहरों-कस्बों में आकर लूटपाट और मारधाड़ का कारोबार चला रहे हैं। बद्रीप्रसाद ढाका-70 पार के पत्रकार (संपादक-ग्राम बजट) हैं और शहरी अर्थशास्त्रीयों से अधिक गांवों और युवाओं की बेरोजगारी को लेकर बताते हैं चारों तरफ सामाजिक- आर्थिक असमानता बढ़ रही है, शहरी मीडिया एवं सोशियल मीडिया पर बाजार, सरकार और धर्म पाखण्ड का शोर फैल रहा है तो बेरोजगारों की भीड़ और आतंक ने गांवों में पंचायतीराज को निष्फल कर दिया है। जातीय गुटों और साम्प्रदायिक उन्माद से नया भारत- विकास की दौड़ में अस्थिर हो रहा है। एक भूचाल और निप्लव ग्रामीण युवा बेरोजगारों में छाया हुआ है। जम्मू कश्मीर, नक्सलवाद, दलित महिला आदिवासी उत्पीड़न दूरदराज के गांवों में बढ़ रहे हैं क्योंकि खेत किसान और मजदूर आपस में ही एक दूसरे को मार रहे हैं और मर रहे हैं।

हमें आश्चर्य तो ये लगता है कि नई राजनीति का नया भारत केवल शहरों तक सिमट गया है और बेरोजगारी की समस्या को कोई समझना ही नहीं चाहता और पुलिस, फौज सिपाही को ही आर्थिक बदहाली से निपटने की जिम्मेदारी अब दे दी गई है। गांवों में युवा बेरोजगारी का ऐसा हाल है कि विकास और सद्भाव का आधार ही मिट रहा है। हम आंकड़ों से सच्चाई की आंख में धूल नहीं झोंकना चाहते और केवल ध्यान दिलाना चाहते हैं कि भारत की बदहाली को जानने के लिए नए भारत के निर्माताओं को अपने पांवों तले की आग को देखना चाहिए। क्योंकि मोर नाचता है तो सुंदर लगता है, लेकिन जब वह अपने पांवों की तरफ देखता है, तो रोता है। ग्रामीण भारत के करोड़ों बेरोजगार अभी मुक्त बाजार और टेक्नॉलोजी की जादूगरी से अराजकता की तरफ जा रहे हैं क्योंकि गैर बराबरी कम नहीं हो रही है तथा भूखा नंगा आदमी गाय माता, गंगा माता और गीता माता की माला जपता हुआ तथा राष्ट्र ऋषियों के मंत्र और धर्म संसद के प्रवचन सुनते-सुनते पागल होता जा रहा है। अत: समय रहते गांवों के युवा बेरोजगारों तक कोई दाल रोटी का जुगाड़ करिए।


        कमोबेश समाचार चैनलों का भी यही हाल है प्राइम टाइम में बहस करते है कि गाय कैसे कट गई, मुस्लिम खतरे में है, हिन्दू आतंकवाद का साया बढ़ रहा देश मे,  धारा 370 की समाप्ति होनी चाहिए,  राम नही थे, या हनुमान जी का अद्भुत चमत्कार ,  अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता खतरे में, देश मे बढ़ रही कटरपंथिता, राम मंदिर बनेगा की नहीं, दलित बेटी का बलात्कार - हैवान घूम रहे सड़कों पर और न जाने क्या क्या.....क्या क्या.....
इनसे कोई पूछे कि अपने ये चैनल क्यों बनाया था तो कहेंगे कि सत्य दिखाने के लिये, लेकिन कर क्या रहें है सत्य की हत्या, पब्लिक को गुमराह कर रहे हैं। सच से मोड़कर असत्य विषयो की ओर अग्रसर करना ये पेड मीडिया की वास्तविकता है।
लेकिन सवाल उनसे है जो वास्तव में आम आदमी है, जिसका उन समस्यायों से रोज ही सामना होता है, आखिर वो इस बहस में क्यों उलझ गया है? अरे भाई युवा, बेरोजगार, गरीब कम से कम तुम ही आवाज उठाओ अपनी, अपने सच को लोगो तक पहुंचाओ, अपने दर्द को बयां करो, अपने नजदीकी नेता को सुनाओ अपनी आवाज संगठित होकर।
उठो..... आगे बढ़ो और सफलता प्राप्त करो।

जै हिन्द! जै भारत! 🙏

No comments:

Post a Comment

क्यों हो परेशान जब आप कम सकते हो ऑनलाइन घर बैठे कोई मार्केटिंग नहीं कोई इन्वेस्टमेंट नही

हम बात कर रहे हैं घर बैठे कमाने के बारे में | हो सकता ये आपको आश्चर्य जनक लगे लेकिन इसमें कोई नयी बात नहीं है दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं...

Popular Posts