ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कौन हैं सर्वश्रेष्ठ?
भारत में सदियों से वैष्णवों और शैव सम्प्रदाय को मानने वालों के बीच श्रेष्ठता का झगड़ा होता रहा है. वैसे ये सवाल किसी को भी जायज लग सकता है कि कहानियों और मिथकों के हिसाब से ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कौन सर्वश्रेष्ठ है?
आखिर विष्णु और महेश की पूजा क्यों होती है? ब्रह्मा की पूजा क्यों नहीं होती? और क्या रहस्य है शिवलिंग के पीछे?
शिव की श्रेष्ठता को लेकर कई कथाएं हैं। उनमें से एक कथा के अनुसार ब्रह्मा और विष्णु में एक बार श्रेष्ठता को लेकर झगड़ा हो गया। ब्रह्मा ने विष्णु से कहा,'मैं हर जीवित अस्तित्व का पिता हूं। इसमें तुम भी शामिल हो।'
विष्णु को यह अच्छा नहीं लगा. उन्होंने ब्रह्मा से कहा, ‘ तुम एक कमल के फूल में पैदा हुए थे, जो मेरी नाभि से निकला था। इस तरह तुम्हारा जनक मैं हुआ.’
ब्रह्मा पूरे संसार के जनक थे तो विष्णु उसके पालक. ब्रह्मा रचते ही नहीं तो विष्णु चलाते क्या और विष्णु संसार को चलाते पालते नहीं तो ब्रह्मा की बनाई दुनिया बेमतलब होती.
दोनों के बीच झगड़ा चल ही रहा था कि अचानक एक अग्नि स्तंभ अवतरित हुआ। वो अग्नि स्तंभ बेहद विशाल था। दोनों की आंखों उसके सिरों को नहीं देख पा रहीं थीं।
दोनों के बीच तय हुआ कि ब्रह्मा आग के इस खंभे का उपरी सिरा खोजेंगे और विष्णु निचला सिरा. ब्रह्मा ने हंस का रूप धरा और ऊपर उड़ चले अग्नि स्तंभ का ऊपरी सिरा देखने की मंशा से।
विष्णु ने वाराह का रुप धारण किया और धरती के नीचे अग्नि स्तंभ की बुनियाद खोजने निकल पड़े. दोनों में से कोई सफल नहीं हो सका. दोनों लौट कर आए। विष्णु ने मान लिया कि सिरा नहीं खोज पाए। यूं तो खोज ब्रह्मा भी नहीं पाए थे लेकिन उन्होंने कह दिया कि वो सिरा देख कर आए हैं.
ब्रह्मा का असत्य कहना था कि अग्नि स्तंभ फट पड़ा और उसमें से शिव प्रकट हुए। उन्होंने ब्रह्मा को झूठ बोलने के लिए डांटा और कहा कि वो इस कारण से बड़े नहीं हो सकते। उन्होंने विष्णु को सच स्वीकारने के कारण ब्रह्मा से बड़ा कहा।
ब्रह्मा और विष्णु दोनों ने मान लिया कि अग्नि स्तंभ से निकले शिव महादेव यानी किसी अन्य देव से बड़े हैं। वह उन दोनों से भी बड़े हैं क्योंकि दोनों मिल कर भी उनके आदि-अंत का पता नहीं लगा सके।
क्या ब्रह्मा की पूजा नहीं होने के कुछ और भी कारण हैं?
ब्रह्मा का चित्रण साधु की तरह होता है। विष्णु का राजा की तरह और शिव का संन्यासी की तरह। तीनों में से ब्रह्मा की पूजा नहीं होती। इसके दो कारण बताए गए हैं। एक आध्यात्मिक और दूसरा ऐतिहासिक।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ब्रह्मा जीवात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसी आत्मा जो सवालों के जवाब ढूंढती है, इसलिए पूजा के लायक नहीं है। विष्णु और शिव परमात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें सवालों के जवाब मिल चुके हैं.
जवाब पाने के बाद जहां विष्णु वैश्विक दुनिया में हिस्सेदारी रखते हैं वहीं शिव भौतिक दुनिया से परे हैं. इस वजह से विष्णु की आंखें हमेशा खुली रहती हैं जबकि शिव की आंखें बंद होती हैं।
ऐतिहासिक तौर पर ब्रह्मा कर्म कांड के शुरुआती दौर का प्रतिनिधित्व करते हैं. जब यज्ञ को पूरा करने के लिए तमाम तरह के कर्मकांड किए जाते थे.
लेकिन उपासना कांड (काल) में यज्ञ की महत्ता कम हो गई है और इसी के साथ ब्रह्मा भी गौण हो गए. शिव और विष्णु को अधिक तरजीह दी गई. शिव शिकारी के जीवन दर्शाते हैं. जबकि विष्णु गृहस्थ के जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं.
शिव और विष्णु की पूजा करते हुए हिंदू समाज अपने भीतर के द्वंद्व से निपटने में सफल रहा कि भौतिक जीवन को भोगा जाए या इससे दूर रहा जाए.
शिवलिंग निराकार का प्रतीक है लेकिन शिवलिंग की पूजा से जुड़ी हुई कोई कहानी है क्या?
लिंग पुराण में एक कथा है. भृगु मुनि कैलाश पर्वत पर गए ताकि शिव और शक्ति का अभिवादन किया जा सके। उन्होंने देखा कि शिव के ऊपर बैठी शक्ति संभोग में तल्लीन हैं। लेकिन भृगु मुनि के अचानक आने से भगवती शर्मिंदा हो गईं और अपना मुंह कमल से ढक लिया।
लेकिन शिव इससे अनजान मैथुनरत रहे. भृगु को एहसास हुआ कि शिव इतने भोले हैं कि लज्जा जैसी भावनाएं उनके दिमाग में आएंगी नहीं और वह सहवास करते रहेंगे.
भृगु ने संकेत के तौर पर शिव और शक्ति की पूजा करने का फैसला किया जिसमें लिंग योनि से घिरा हुआ है.
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