लग्नेश यदि दशम स्थान में हो तो क्या होगा आपके जीवन का कैरियर और कर्म

ज्योतिषीय ज्ञान
दशम स्थान गत लग्नेश


       कुंडली का सर्वाधिक पवित्र व महत्वपूर्ण स्थान है दशम स्थान | यदि किसी स्थान से दशम स्थान बली हो तो वह स्थान विशेष शाश्वत स्वाभाव का माना जाता है | उदाहरणार्थ दूसरे स्थान का विश्लेषण किया जाये तो दूसरे स्थान से दशम स्थान, अर्थात एकादश स्थान पर ध्यान देना चाहिए | यदि एकादश स्थान में शुभ गृह हों तथा एकादश स्थान बली हो तो दूसरे स्थान को स्वतः बल प्राप्त हो जाता है | इसी प्रक्रार यदि षष्ठ स्थान को जानना चाहें तो षष्ट स्थान से दशम स्थान अर्थात तृतीय स्थान को देखें, यदि तृतीय स्थान बली है तो यह कहा जा सकता है कि षष्ट स्थान स्वतः बली हो गया है तथा जातक रोगमुक्त जीवन प्राप्त करेगा |
       इसलिए लग्न का बलाबल दशम स्थान से देखना होगा | दशम भाव गत लग्नेश अद्वितीय बल प्राप्त करता है यह ऐसे व्यक्ति का सूचक है जो स्वाभाविक भाग्यवान है तथा जो शुभ गुणों से युक्त होगा व जीवन में उन्नति करेगा ऐसा व्यक्ति जो कुशल प्रशासक बनेगा | ऐसे व्यक्ति स्वाभाविक रूप से अपने पूर्वकर्मों के शुभ फलों का उपभोग करने ही इस जीवन में जन्म लेते हैं |
·         दशम स्थान गत लग्नेश भाव-संधि में नहीं होना चाहिए, ऐसा होने पर लग्न का बलक्षय होता है | इस संबंध में किसी भी केंद्र में लग्नेश भाव-संधि में स्थित नहीं होना चाहिए |  भाव-संधि दो प्रकार की होति है |
·         आरोह भाव-संधि
·         अवरोह भाव-संधि
जब गृह नवम स्थान से दशम स्थान में प्रवेश कर रहा हो, तो नवम भाव के उपरांत प्रथम भाव-संधि को आरोह भाव-संधि कहते हैं |
जब कोई गृह भाव-मध्य से अंतिम दस अंशो में जा रहा हो तो इसे अवरोह भाव-संधि कहते हैं |
शुब गृह आरोह भाव-संधि में तथा क्रूर गृह अवरोह भाव-संधि में स्थित होने चाहिए |
जब कोई गृह भावारम्भ बिंदु पर स्थित हो तो वह सर्वाधिक बली गृह बन जाता है | भावारम्भ स्वामी सर्वाधिक बली स्वामी है, वे स्थानविशेष के लिए सर्वप्रथम विश्वस्त उत्तरदायी गृह है | वे उस स्थान के अधिपति से भी अधिक मग्त्वापूर्ण होते हैं |
उदहारण
       यदि सप्तम स्थान मकर राशी का हो तथा भावारम्भ बिंदु पांच अंश व बयालीस मिनट पर हो, जो उत्तरा शाढा नक्षत्र (जिसका स्वामी सूर्य है)  में आता है, तो सप्तम स्थान का प्रथम दायित्व सूर्य पर होगा न कि शनि पर, हालाँकि वह राशीश है |
·         अतः सूर्य पर दुष्प्रभाव देखने होंगे तथा वैवाहिक विलम्ब अथवा विच्छेद के लिए सूर्य ही उत्तरदायी होगा |
यदि स्थानाधिपति तथा भावारम्भ नक्षत्रेश सम- संबंध अथवा संयोग बनायें तो यह अत्यंत शुभ माना जाता है |  यदि महादाशाधिपति अंतर्दाशाधिपति स्थानविशेष के भावारम्भ नक्षत्रेश से युत हो, तो उस स्थान के कार्कतवों का फलित होना सुनिश्चित है |
शुभ गृह होने से दशम स्थान गत लग्नेश आरोह के समय में अतिशुभ माना जाता है | क्रूर गृह होने पर यह अवरोहम में शुभ माना जायेगा तथा भाव-संधि बिंदु में प्रत्येक गृह चाहे वह शुभ हो या क्रूर, शुभ होगा | हालाँकि दशम स्थान में लग्नेश अत्यंत बली माना जाता है, परन्तु वह दिग्बलाहीन नहीं होना चाहिए |
लग्नेश होकर शुक्र दशम स्थान गत होने पर जातक को दीर्घ, परन्तु निस्सार जीवन प्रदान करेगा | ऐसा दीर्घ जीवन किस प्रयोजन का होगा यदि इसके सहायक अवयव ही विद्यमान न हों |
मंगल या सूर्य की लग्नेश होकर दशम स्थान में स्थिति व्यक्ति को शुभ गुण युक्त अलौकिक भाग्यशाली तथा जीवन में सद्गुणों का भोगने वाला बनाती है | दशम स्थान कर्म स्थान होने से इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि जातक इस संसार में  उच्चकोटि या महत्व के कर्म करने हेतु जन्मा है, अर्थात कर्मयोगी होगा |
जातक को अत्यंत शुभ पूर्व पुण्य प्राप्त होगा | इस उद्देश्य हेतु पंचम नवम तथा क्रमशः उनके स्वामी व प्रतिस्थायियों में अन्य सहायक तत्व होने चाहिए | व्यक्ति सदैव सफल होगा तथा दूसरों के  प्रति उसका व्यवहार अत्यंत सहायतापूर्ण होगा | व्यक्ति अल्पावस्था में ही जीविकोपार्जन प्रारंभ कर देगा |
जातक कि आर्थिक स्थिति सुद्रढ़ नहीं होगी, परन्तु उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होगा | इस हेतु लग्नेश का आरोग्यकारक चन्द्र से संबंध देखना होगा इससे व्यक्ति के जीवन में संभावित कष्टों कि मात्रा का भी अध्ययन किया जा सकता है |  व्यक्ति स्वनिर्मित व्यक्तित्वा तथा जीवन में स्वनिर्मित व्यक्ति तथा स्वावलंबी होगा |
दशम स्थान गत लग्नेश केन्द्रधिपति दोष से मुक्त होना चाहिए सामान्यतः लग्नेश पर कदापि केन्द्रधिपति दोष नहीं लगता क्योंकि वह एक केंद्र के साथ साथ एक कोण का भी स्वामी होता है | तो ये दोष कब लागू होगा ?
यह केवल तभी संभव है जब लगेंश किसी अन्य केंद्र का भी स्वामी हो, जो केवल ब्रहस्पति तथा बुध अर्थात मिथुनम, कन्या, धनु व मीन लग्न के लग्नेश होने पर लागू हो सकता है |
दशम स्थान गत लग्नेश दर्शाता है कि जातक के जनम के पश्चात् उसके पिता को अत्यधिक लाभ प्राप्त होगा | यह जातक के परिवार में एकमात्र पुत्र होने का भी सूचक है | इसके लिए लग्नेश की सूर्य से युति या द्रष्टि होनी चाहिए या नक्षत्रों का संबंध होने चाहिए |


यदि सूर्य लग्नेश होकर दशम स्थान में स्थित हो, तो जातक अपने पिता कि एकमात्र पुत्र संतति होगी |  यह जातक के अपने पारिवारिक पारम्परिक व्यवसाय में संलग्न होने का भी सूचक है

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