आज हम सब लोग राष्ट्र का 70 वां गणतंत्र का उत्सव मना रहे हैं| सभी
के मन में अपार ख़ुशी है हमें भी ख़ुशी हो रही है| मेरा मानना ये है कि हम जिस चीज
का उत्सव मना रहे हैं वो जरुर मनाएं परन्तु उसके पीछे के महत्व और कारण को अवश्य
समझे जिससे कि हमे इस बात का एहसास रहे कि हम क्या हैं और ये उत्सव क्यों ?
इसी आर्यावर्त देश में महाजनपद काल के समय में लिच्छवी, चेटक,
मिथिला और वज्जी (वैशाली) जैसे बड़े गणराज्य थे| इन गणराज्यों में शासन चलाने के
लिए लोकतान्त्रिक तरीके प्रयोग किये जाते थे| गण का अर्थ होता है एक कबीला जिसमे एक
प्रकार के लोग हों जिनका रहन सहन और बोल- चाल एक जैसी हो; और गणों के समूह को
जिसमे शासन भी स्वयं किसी न किसी गण द्वारा किया जाता हो उस राज्य को गण कहते थे,
किन्तु यहाँ राजा बनाने की प्रक्रिया लोकतान्त्रिक थी न की वंशानुगत | उस समय
गणराज्य एक प्रकार से बड़े व्यापारियों के ही संघ थे जिसमे सभी वर्णों के लोगों को
राजा बनने का अधिकार था| परन्तु इनमे एक ही कमी थी कि इनकी सैन्य शक्ति कमजोर थी|
इन गणराज्यों में बौध धर्म का विस्तार बहुत ही शीघ्रता से हुआ तथा लोगों का ध्यान
शांति पूर्वक जीवन जीने और मृत्यु के बाद के मोक्ष आदि प्राप्त करने की और अधिक
हुआ| क्युकी यह एक नियम है कि जब समाज में शांति और उतम राज व्यवस्था होती है तभी
व्यापार फलता फूलता है और कला संस्कृति आदि का उत्थान होता है, केवल उस समय ही
मनुष्य मोक्ष प्राप्ति आदि के लिए सोच सकता है ये सब मैं इसलिए बता रहा हूँ कि
ताकि आप जान सके कि हम कहाँ थे और कहाँ आ गये हैं|
तत्पश्चात इसी देश में उन गणराज्यों को समाप्त कर दिया जाता है और
एक बड़ा राज्य मौर्य युग के समय स्थापित किया जाता है| उसमे भी जब तक चाणक्य जैसे
लोग रहते हैं व्यवस्था उत्तम रहती है, राज
काज नियम पूर्वक और लोगों के हितों को ध्यान में रखकर किया जाता है; परन्तु
विष्णुगुप्त का राष्ट्र धर्म सदैव लोगों के हितों से बढ़कर होता है और सैन्य शक्ति
से मजबूत एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण होता है| अशोक के समय उसे और वृद्धि प्राप्त
होती है परन्तु कलिंग जैसे एक बड़े गणराज्य का अंत भी कर दिया जाता है जो कि सम्राट
अशोक की केवल राज्य आकांक्षा की वजह से होता है| हालाँकि आप कह सकते हैं कि अशोक
का ह्रदय परिवर्तन उसी वजह से हुआ | लेकिन इसके साथ ही हमने उस अंतिम आशा को भी खो
दिया जो कि गण राज्य में लोगों के द्वारा, लोगों पर ,लोगों के लिए शासन करने के
सिद्धांत पर आधारित थी| फिर आप जानते ही कैसे छल पूर्वक पुष्यमित्र शुंग द्वारा
अपने ही राजा की हत्या कर दी जाती है और ब्राह्मण धर्म का पुनरुथान करने के नाम पर
कैसी हिंसा होती है| लोगों से उनके अधिकार छीन लिए जाते है और स्मृति का खेल रचा
जाता है| इनके पुरोहित रहे पतंजलि वो भी
कर्मकांडी थे| चलिए पुरानी बातें यहीं
खत्म करते हैं और नए दौर में आते हैं|
जब भारत आजाद हो कर एक संविधान से चलने वाला राष्ट्र बन गया है और
हम नागरिकों को ही सब अधिकार प्राप्त हैं| यहाँ आप देखें और समझें कि इस नए
गणतंत्र का क्या अर्थ है क्या यह एक शब्द मात्र है जो कि संविधान निर्माताओं ने
यूँ ही रख दिया या फिर कुछ सोच समझ कर रखा| मुझे तो ऐसा ही लगता है कि इस शब्द का
चुनाव कुछ सोच समझ कर ही किया गया होगा|
नये अर्थ में गण हैं हम लोग भारत के नागरिक और तंत्र है ये व्यवस्था
, ये सिस्टम जो कि हमारे द्वारा चलाया जा रहा है| इसमें शासक भी हम ही हैं और
शासित भी हम ही हैं और शासन भी हमारे कल्याण के लिए ही है| गणतंत्र मतलब लोगों का तंत्र
या प्रजातंत्र या लोकतंत्र|
लेकिन कहाँ हैं लोकतंत्र? ये ही एक मात्र प्रश्न है जो बस पूछा
जाना चाहिए बाकि तो सब हो समझ ही जायेंगे|
लोक तंत्र होता है नागरिकों द्वारा न कि प्रजा द्वारा ! कोई प्रजा राजा से अधिकार नहीं मांगती न ही मांग
सकती है, क्यूंकि प्रजा होती है राज तंत्र में, जिसमे राजा ही सर्वोच्च होता है|
अधिकार हमेशा नागरिकों को ही मिलता है और अधिकार की दूसरी बात ये है कि ये हमेशा
छीनकर ही लिया जाता है ये अधिकार कोई आपको देगा नहीं| क्या हम अपने अधिकारों के लिए जागरूक हैं ?
आज
इस 70वें गणतंत्र 26 जनवरी 2019 पर हम ये प्रश्न स्वंय से पूछें कि क्या हम एक
नागरिक बन पायें हैं? एक नागरिक का अधिकार होता है कि उसने जिनको सत्ता सौपीं है
उनसे सवाल करे उनसे पूछे कि जो जिम्मेदारी दी गयी थी वो पूरी की या नहीं | नागरिक सवाल
करता है अपने मत का मूल्य समझता है न की थोड़े से लालच के लिए अपना मत किसी को भी
दे दे | नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्य के बारे में सजग रहता है| अधिकार और
कर्तव्य केवल वो नहीं है जो कि संविधान में लिखे हैं | अरे भाई वो तो मूल अधिकार और
मूल कर्तव्य हैं|
आज का सबसे बड़ा काम यही है कि हम एक सच्चे नागरिक बनें| लेकिन ये
सब लोग, ये सब किताबें धर्मग्रन्थ चाहें वो किसी भी धर्म का क्यों न हो, ये बिकाऊ
मीडिया, ये नेता चाहें वो राजनितिक हों या फिर आपके धर्म गुरु, मौलवी, पादरी कोई
भी , या आपके जाति के नेता, या आपके क्षेत्र के नेता ये सब आपको नागरिक नहीं बनने देंगे न ही चाहेंगे कि आप
नागरिक बनें क्यूंकि नागरिक के पास आंख होती है, कान होतें हैं, जिव्हा होती है और
सबसे खास की नागरिक के पास विवेक होता है, तर्क होता है |
बाकि हम लोग आज इस गण तंत्र उत्सव को जरुर मनाएं और अच्छे से मनाएं लेकिन
बाकि हम लोग आज इस गण तंत्र उत्सव को जरुर मनाएं और अच्छे से मनाएं लेकिन
आज हम ये भी सोचें कि इस नागरिकता की दौड़ में हम कहाँ तक आयें हैं और हमे
कितना चलना शेष है?
बस आज की बात इसी प्रश्न के साथ समाप्त ........ आशा है कि मेरी
बात पर आप गौर फरमाएंगे.......................
आपका अभय