क्यों हम मनाएं गणतंत्र उत्सव ?


     

आज हम सब लोग राष्ट्र का 70 वां गणतंत्र का उत्सव मना रहे हैं| सभी के मन में अपार ख़ुशी है हमें भी ख़ुशी हो रही है| मेरा मानना ये है कि हम जिस चीज का उत्सव मना रहे हैं वो जरुर मनाएं परन्तु उसके पीछे के महत्व और कारण को अवश्य समझे जिससे कि हमे इस बात का एहसास रहे कि हम क्या हैं और ये उत्सव क्यों ?
      इसी आर्यावर्त देश में महाजनपद काल के समय में लिच्छवी, चेटक, मिथिला और वज्जी (वैशाली) जैसे बड़े गणराज्य थे| इन गणराज्यों में शासन चलाने के लिए लोकतान्त्रिक तरीके प्रयोग किये जाते थे| गण का अर्थ होता है एक कबीला जिसमे एक प्रकार के लोग हों जिनका रहन सहन और बोल- चाल एक जैसी हो; और गणों के समूह को जिसमे शासन भी स्वयं किसी न किसी गण द्वारा किया जाता हो उस राज्य को गण कहते थे, किन्तु यहाँ राजा बनाने की प्रक्रिया लोकतान्त्रिक थी न की वंशानुगत | उस समय गणराज्य एक प्रकार से बड़े व्यापारियों के ही संघ थे जिसमे सभी वर्णों के लोगों को राजा बनने का अधिकार था| परन्तु इनमे एक ही कमी थी कि इनकी सैन्य शक्ति कमजोर थी| इन गणराज्यों में बौध धर्म का विस्तार बहुत ही शीघ्रता से हुआ तथा लोगों का ध्यान शांति पूर्वक जीवन जीने और मृत्यु के बाद के मोक्ष आदि प्राप्त करने की और अधिक हुआ| क्युकी यह एक नियम है कि जब समाज में शांति और उतम राज व्यवस्था होती है तभी व्यापार फलता फूलता है और कला संस्कृति आदि का उत्थान होता है, केवल उस समय ही मनुष्य मोक्ष प्राप्ति आदि के लिए सोच सकता है ये सब मैं इसलिए बता रहा हूँ कि ताकि आप जान सके कि हम कहाँ थे और कहाँ आ गये हैं|



      तत्पश्चात इसी देश में उन गणराज्यों को समाप्त कर दिया जाता है और एक बड़ा राज्य मौर्य युग के समय स्थापित किया जाता है| उसमे भी जब तक चाणक्य जैसे लोग रहते हैं व्यवस्था उत्तम रहती है,  राज काज नियम पूर्वक और लोगों के हितों को ध्यान में रखकर किया जाता है; परन्तु विष्णुगुप्त का राष्ट्र धर्म सदैव लोगों के हितों से बढ़कर होता है और सैन्य शक्ति से मजबूत एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण होता है| अशोक के समय उसे और वृद्धि प्राप्त होती है परन्तु कलिंग जैसे एक बड़े गणराज्य का अंत भी कर दिया जाता है जो कि सम्राट अशोक की केवल राज्य आकांक्षा की वजह से होता है| हालाँकि आप कह सकते हैं कि अशोक का ह्रदय परिवर्तन उसी वजह से हुआ | लेकिन इसके साथ ही हमने उस अंतिम आशा को भी खो दिया जो कि गण राज्य में लोगों के द्वारा, लोगों पर ,लोगों के लिए शासन करने के सिद्धांत पर आधारित थी| फिर आप जानते ही कैसे छल पूर्वक पुष्यमित्र शुंग द्वारा अपने ही राजा की हत्या कर दी जाती है और ब्राह्मण धर्म का पुनरुथान करने के नाम पर कैसी हिंसा होती है| लोगों से उनके अधिकार छीन लिए जाते है और स्मृति का खेल रचा जाता है| इनके पुरोहित रहे  पतंजलि वो भी कर्मकांडी  थे| चलिए पुरानी बातें यहीं खत्म करते हैं और नए दौर में आते  हैं|

      जब भारत आजाद हो कर एक संविधान से चलने वाला राष्ट्र बन गया है और हम नागरिकों को ही सब अधिकार प्राप्त हैं| यहाँ आप देखें और समझें कि इस नए गणतंत्र का क्या अर्थ है क्या यह एक शब्द मात्र है जो कि संविधान निर्माताओं ने यूँ ही रख दिया या फिर कुछ सोच समझ कर रखा| मुझे तो ऐसा ही लगता है कि इस शब्द का चुनाव कुछ सोच समझ कर ही किया गया होगा|
      नये अर्थ में गण हैं हम लोग भारत के नागरिक और तंत्र है ये व्यवस्था , ये सिस्टम जो कि हमारे द्वारा चलाया जा रहा है| इसमें शासक भी हम ही हैं और शासित भी हम ही हैं और शासन भी हमारे कल्याण के लिए ही है| गणतंत्र मतलब लोगों का तंत्र या प्रजातंत्र या लोकतंत्र|
      लेकिन कहाँ हैं लोकतंत्र? ये ही एक मात्र प्रश्न है जो बस पूछा जाना चाहिए बाकि तो सब हो समझ ही जायेंगे|
      लोक तंत्र होता है नागरिकों द्वारा न कि प्रजा द्वारा !  कोई प्रजा राजा से अधिकार नहीं मांगती न ही मांग सकती है, क्यूंकि प्रजा होती है राज तंत्र में, जिसमे राजा ही सर्वोच्च होता है| अधिकार हमेशा नागरिकों को ही मिलता है और अधिकार की दूसरी बात ये है कि ये हमेशा छीनकर ही लिया जाता है ये अधिकार कोई आपको देगा नहीं|  क्या हम अपने अधिकारों के लिए जागरूक हैं ? 

        

         आज इस 70वें गणतंत्र 26 जनवरी 2019 पर हम ये प्रश्न स्वंय से पूछें कि क्या हम एक नागरिक बन पायें हैं? एक नागरिक का अधिकार होता है कि उसने जिनको सत्ता सौपीं है उनसे सवाल करे उनसे पूछे कि जो जिम्मेदारी  दी गयी थी वो पूरी की या नहीं | नागरिक सवाल करता है अपने मत का मूल्य समझता है न की थोड़े से लालच के लिए अपना मत किसी को भी दे दे | नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्य के बारे में सजग रहता है| अधिकार और कर्तव्य केवल वो नहीं है जो कि संविधान में लिखे हैं | अरे भाई वो तो मूल अधिकार और मूल कर्तव्य हैं|


      आज का सबसे बड़ा काम यही है कि हम एक सच्चे नागरिक बनें| लेकिन ये सब लोग, ये सब किताबें धर्मग्रन्थ चाहें वो किसी भी धर्म का क्यों न हो, ये बिकाऊ मीडिया, ये नेता चाहें वो राजनितिक हों या फिर आपके धर्म गुरु, मौलवी, पादरी कोई भी , या आपके जाति के नेता, या आपके क्षेत्र के नेता  ये सब  आपको नागरिक नहीं बनने देंगे न ही चाहेंगे कि आप नागरिक बनें क्यूंकि नागरिक के पास आंख होती है, कान होतें हैं, जिव्हा होती है और सबसे खास की नागरिक के पास विवेक होता है, तर्क होता है |

      बाकि हम लोग आज इस गण तंत्र उत्सव को जरुर मनाएं और अच्छे से मनाएं लेकिन 
      आज हम ये भी सोचें कि इस नागरिकता की दौड़ में हम कहाँ तक आयें हैं और हमे कितना चलना शेष है?
      बस आज की बात इसी प्रश्न के साथ समाप्त ........ आशा है कि मेरी बात पर आप गौर फरमाएंगे.......................
      आपका अभय

     

मकर संक्रांति का इतिहास और संक्राति का आपकी राशि पर प्रभाव




हिंदुओं में मकर संक्रांति का त्योहार बहुत धुमधाम से मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति परंपरागत रूप से 14 जनवरी को मनाई जाती आ रही है लेकिन 2012 से मकर संक्रांति की तिथि को लेकर उलझन की स्थिति बनती चली आ रही है। पिछले कुछ वर्षों में मकर संक्रांति 14 को मनाई जाएगी या 15 जनवरी को इस बात को लेकर सवाल सामने आने लगे हैं।
किया जाता है दान
सूर्य का धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रांति कहलाता है। इसी दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं। शास्त्रों में यह समय देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा जाता है। मकर संक्राति सूर्य के उत्तरायण होने से गरम मौसम की शुरुआत होती है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर लौटता है। इसलिए भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद पूजन करके घी, तिल, कंबल और खिचड़ी का दान किया जाता है।
मकर संक्रांति का इतिहास
श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण के मुताबिक, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था, इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था।
यमराज ने की थी तपस्या
पिता सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की। लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया। इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ठ भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे।
मकर में हुआ सूर्य का प्रवेश
कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था। उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन धान्य से भर जाएगा। तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। इसी समय से मकर संक्राति पर तिल से सूर्य एवं शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ।
काले तिल से की पूजा
शनि देव की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि महाराज को आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति मकर संक्राति के दिन काले तिल से सूर्य की पूजा करेगा उसके सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाएंगे। इस दिन तिल से सूर्य पूजा करने पर आरोग्य सुख में वृद्धि होती है। शनि के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं तथा आर्थिक उन्नति होती है। तिल का भोग लगाने के बाद उसे प्रसाद के रूप में भी ग्रहण करना चाहिए।
भीष्म पितामाह ने चुना था आज का दिन
मान्यता है कि इस अवसर पर दिया गया दान 100 गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

14 जनवरी से सूर्य आएंगे पुत्र शनि के घर, जानिए क्या होगा आप पर असर


ज्योतिष शास्त्र की गोचर गणनानुसार 14 जनवरी 2019, सोमवार से सूर्य सायं 7 बजकर 45 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। मकर राशि में सूर्य शत्रुक्षेत्री होंगे, क्योंकि ज्योतिषीय ग्रहमैत्री के अनुसार सूर्य व शनि नैसर्गिक रूप से शत्रु माने जाते हैं। सूर्य का शत्रु राशि मकर में प्रवेश समस्त 12 राशियों को भी प्रभावित करेगा।
आइए जानते हैं सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का आपकी राशि पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
1. मेष- मेष राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार व्यापार में लाभ प्राप्त होगा। कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। धनलाभ होगा। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। शासन से सहयोग प्राप्त होगा। राजनीति से जुड़े व्यक्तियों को लाभ होगा।
2. वृषभ- वृषभ राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार धनहानि की आशंका है। झूठे आरोप के कारण प्रतिष्ठा धूमिल होगी। कार्यों में असफलता प्राप्त होगी। रोग के कारण कष्ट होगा। पारिवारिक विवाद के कारण अशांति का वातावरण रहेगा।
3. मिथुन- मिथुन राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार विवाद के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। कोर्ट-कचहरी व मुकदमे में असफलता के योग हैं। धन का अपव्यय होगा। उच्च रक्तचाप के कारण कष्ट होगा। मान-प्रतिष्ठा में कमी आएगी।
4. कर्क- कर्क राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार दांपत्य सुख में हानि होगी। कार्यों में असफलता प्राप्त होगी। धनहानि एवं मानहानि होगी। सिर में पीड़ा के साथ-साथ शारीरिक कष्ट की आशंकाएं हैं।
5. सिंह- सिंह राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी। रोगों से मुक्ति मिलेगी। राज्य से लाभ प्राप्त होगा। प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
6. कन्या- कन्या राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार मानसिक पीड़ा होगी। राज्याधिकारियों से विवाद होगा। संतान को कष्ट की आशंका है। धनहानि होगी। यात्रा में दुर्घटना की संभावना है।
7. तुला- तुला राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार पारिवारिक विवाद के कारण कष्ट होगा। धनहानि व मानहानि होगी। यात्रा में कष्ट होगा। जमीन-जायदाद संबंधी मामलों में असफलता प्राप्त होगी। मानसिक अशांति के कारण कष्ट रहेगा।
8. वृश्चिक- वृश्चिक राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार मित्रों से लाभ होगा। धनलाभ होगा। राज्याधिकारियों से अनुकूलता प्राप्त होगी। पदोन्नति की संभावना है। उच्च पद की प्राप्ति होगी। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी। प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
9. धनु- धनु राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार व्यापार व धन-संपत्ति में हानि का योग है। मित्रों व परिवारजनों से विवाद की आशंका है। सिर व आंखों में पीड़ा के कारण परेशानी रहेगी।
10. मकर- मकर राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार धनहानि के योग हैं। सम्मान व प्रतिष्ठा में कमी होगी। राज्याधिकारियों से विवाद होगा। आंखों में पीड़ा के कारण कष्ट होगा।
11. कुंभ- कुंभ राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार स्थान परिवर्तन का योग बन रहा है। कार्यक्षेत्र में परेशानियां रहेंगी। गुप्त शत्रुओं के कारण हानि का योग है।
12. मीन- मीन राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार धन प्राप्ति का योग है। पदोन्नति के अवसर हैं। मान-सम्मान व प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। शासकीय कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। पदोन्नति के योग बनेंगे।
सूर्य के अशुभ प्रभाव की शांति हेतु उपयोगी उपाय-
-250 ग्राम गुड़ रविवार को बहते जल में प्रवाहित करें।
-प्रतिदिन कुमकुम मिश्रित जल से सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
-प्रति रविवार 8 बादाम मंदिर में चढ़ाएं।
-प्रति रविवार सूर्यास्त से पूर्व बिना नमक वाला भोजन करें।
-सवत्सा लाल गाय का दान करें।
-लाल वस्त्र न पहनें।

नारद का मोह और श्री कृष्ण का तुला दान






एक बार देवर्षि नारद के मन में आया कि भगवान् के पास बहुत महल आदि है है, एक- आध हमको भी दे दें तो यहीं आराम से टिक जायें, नहीं तो इधर-उधर घूमते रहना पड़ता है। भगवान् के द्वारिका में बहुत महल थे।

नारद जी ने भगवान् से कहा- भगवन ! आपके बहुत महल हैं, एक हमको दो तो हम भी आराम से रहें। आपके यहाँ खाने- पीने का इंतजाम अच्छा ही है । भगवान् ने सोचा कि यह मेरा भक्त है, विरक्त संन्यासी है। अगर यह कहीं राजसी ठाठ में रहने लगा तो थोड़े दिन में ही इसकी सारी विरक्ति भक्ति निकल जायेगी।

 हम अगर सीधा ना करेंगे तो यह बुरा मान जायेगा, लड़ाई झगड़ा करेगा कि इतने महल हैं और एकमहल नहीं दे रहे हैं। भगवान् ने चतुराई से काम लिया, नारद से कहा जाकर देख ले, जिस मकान में जगह खाली मिले वही तेरे नाम कर देंगे।

नारद जी वहाँ चले। भगवान् की तो १६१०८ रानियाँ और प्रत्येक के ११- ११ बच्चे भी थे। यह द्वापर युग की बात है।

 सब जगह नारद जी घूम आये लेकिन कहीं एक कमरा भी खाली नहीं मिला, सब भरे हुए थे। आकर भगवान् से कहा वहाँ कोई जगह खाली नहीं मिली। भगवान् ने कहा फिर क्या करूँ , होता तो तेरे को दे देता। नारद जी के मन में आया कि यह तो भगवान् ने मेरे साथ धोखाधड़ी की है, नहीं तो कुछ न कुछ करके, किसी को इधर उधर शिफ्ट कराकर, खिसकाकर एक कमरा तो दे ही सकते थे।

इन्होंने मेरे साथ धोखा किया है तो अब मैं भी इन्हे मजा चखाकर छोडूँगा। नारद जी रुक्मिणी जी के पास पहुँचे, रुक्मिणी जी ने नारद जी की आवभगत की, बड़े प्रेम से रखा। उन दिनों भगवान् सत्यभामा जी के यहाँ रहते थे।

 एक आध दिन बीता तो नारद जी ने उनको दान की कथा सुनाई, सुनाने वाले स्वयं नारद जी। दान का महत्त्व सुनाने लगे कि जिस चीज का दान करोगे वही चीज आगे तुम्हारे को मिलती है। जब नारद जी ने देखा कि यह बात रुक्मिणी जी को जम गई है तो उनसे पूछा आपको सबसे ज्यादा प्यार किससे है ?

रुक्मिणी जी ने कहा यह भी कोई पूछने की बात है, भगवान् हरि से ही मेरा प्यार है। कहने लगे फिर आपकी यही इच्छा होगी कि अगले जन्म में तुम्हें वे ही मिलें।

 रुक्मिणी जी बोली इच्छा तो यही है। नारद जी ने कहा इच्छा है तो फिर दान करदो, नहीं तो नहीं मिलेंगे। आपकी सौतें भी बहुत है और उनमें से किसी ने पहले दान कर दिया उन्हें मिल जायेंगे। इसलिये दूसरे करें, इसके पहले आप ही कर दे। रुक्मिणी जी को बात जँच गई कि जन्म जन्म में भगवान् मिले तो दान कर देना चाहियें।

रुक्मिणी से नारद जी ने संकल्प करा लिया। अब क्या था, नारद जी का काम बन गया। वहाँ से सीधे सत्यभामा जी के महल में पहुँच गये और भगवान् से कहा कि उठाओ कमण्डलु, और चलो मेरे साथ। भगवान् ने कहा कहाँ चलना है, बात क्या हुई ? नारद जी ने कहा बात कुछ नहीं, आपको मैंने दान में ले लिया है। आपने एक कोठरी भी नहीं दी तो मैं अब आपको भी बाबा बनाकर पेड़ के नीचे सुलाउँगा। सारी बात कह सुनाई।

भगवान् ने कहा रुक्मिणी ने दान कर दिया है तो ठीक है। वह पटरानी है, उससे मिल तो आयें। भगवान् ने अपने सारे गहने गाँठे, रेशम के कपड़े सब खोलकर सत्यभामा जी को दे दिये और बल्कल वस्त्र पहनकर, भस्मी लगाकर और कमण्डलु लेकर वहाँ से चल दिये।

उन्हें देखते ही रुक्मिणी के होश उड़ गये। पूछा हुआ क्या ? भगवान् ने कहा पता नहीं, नारद कहता है कि तूने मेरे को दान में दे दिया। रुक्मिणी ने कहा लेकिन वे कपड़े, गहने कहाँ गये, उत्तम केसर को छोड़कर यह भस्मी क्यों लगा ली ? भगवान् ने कहा जब दान दे दिया तो अब मैं उसका हो गया। इसलिये अब वे ठाठबाट नहीं चलेंगे।

अब तो अपने भी बाबा जी होकर जा रहे हैं । रुक्मिणी ने कहा मैंने इसलिये थोड़े ही दिया था कि ये ले जायें।

 भगवान् ने कहा और काहे के लिये दान दिया जाता है ? इसीलिये दिया जाता है कि जिसको दो वह ले जाये । अब रुक्मिणी को होश आया कि यह तो गड़बड़ मामला हो गया। रुक्मिणी ने कहा नारद जी यह आपने मेरे से पहले नहीं कहा, अगले जन्म में तो मिलेंगे सो मिलेंगे, अब तो हाथ से ही खो रहे हैं । नारद जी ने कहा अब तो जो हो गया सो हो गया, अब मैं ले जाऊँगा। रुक्मिणी जी बहुत रोने लगी।

तब तक हल्ला गुल्ला मचा तो और सब रानियाँ भी वहा इकठ्ठी हो गई। सत्यभामा, जाम्बवती सब समझदार थीं। उन्होंने कहा भगवान् एक रुक्मिणी के पति थोड़े ही हैं, इसलिये रुक्मिणी को सर्वथा दान करने का अधिकार नहीं हो सकता, हम लोगों का भी अधिकार है।

नारद जी ने सोचा यह तो घपला हो गया। कहने लगे क्या भगवान् के टुकड़े कराओगे ? तब तो 16108 हिस्से होंगे। रानियों ने कहा नारद जी कुछ ढंग की बात करो। नारद जी ने विचार किया कि अपने को तो महल ही चाहिये था और यही यह दे नहीं रहे थे, अब मौका ठीक है, समझौते पर बात आ रही है।

नारद जी ने कहा भगवान् का जितना वजन है, उतने का तुला दान कर देने से भी दान मान लिया जाता है ।

 तुलादान से देह का दान माना जाता है। इसलिये भगवान् के वजन का सोना, हीरा, पन्ना दे दो। इस पर सब रानियाँ राजी हो गई। बाकी तो सब राजी हो गये लेकिन भगवान् ने सोचा कि यह फिर मोह में पड़ रहा है । इसका महल का शौक नहीं गया। भगवान् ने कहा तुलादान कर देना चाहिये, यह बात तो ठीक हे ।

भगवान् तराजु के एक पलड़े के अन्दर बैठ गये। दूसरे पलड़े में सारे गहने, हीरे, पन्ने रखे जाने लगे। लेकिन जो ब्रह्माण्ड को पेट में लेकर बैठा हो, उसे द्वारिका के धन से कहाँ पूरा होना है। सारा का सारा धन दूसरे पलड़े पर रख दिया लेकिन जिस पलड़े पर भगवान बैठे थे वह वैसा का वैसा नीचे लगा रहा, ऊपर नहीं हुआ ।

नारद जी ने कहा देख लो, तुला तो बराबर हो नहीं रहा है, अब मैं भगवान् को ले जाऊँगा । सब कहने लगे अरे कोई उपाय बताओ । नारद जी ने कहा और कोई उपाय नहीं है । अन्य सब लोगों ने भी अपने अपने हीरे पन्ने लाकर डाल दिये लेकिन उनसे क्या होना था । वे तो त्रिलोकी का भार लेकर बैठे थे। नारद जी ने सोचा अपने को अच्छा चेला मिल गया, बढ़िया काम हो गया । उधर औरते सब चीख रही थी। नारद जी प्रसन्नता के मारे इधर ऊधर टहलने लगे।

भगवान् ने धीरे से रुक्मिणी को बुलाया। रुक्मिणी ने कहा कुछ तो ढंग निकालिये, आप इतना भार लेकर बैठ गये, हम लोगों का क्या हाल होगा ? भगवान् ने कहा ये सब हीरे पन्ने निकाल लो, नहीं तो बाबा जी मान नहीं रहे हैं।

 यह सब निकालकर तुलसी का एक पत्ता और सोने का एक छोटा सा टुकड़ा रख दो तो तुम लोगों का काम हो जायगा। रुक्मिणी ने सबसे कहा कि यह नहीं हो रहा है तो सब सामान हटाओ । सारा सामान हटा दिया गया और एक छोटे से सोने के पतरे पर तुलसी का पता रखा गया तो भगवान् के वजन के बराबर हो गया ।

सबने नारद जी से कहा ले जाओ तूला दान। नारद जी ने खुब हिलाडुलाकर देखा कि कहीं कोई डण्डी तो नहीं मार रहा है । नारद जी ने कहा इन्होंने फिर धोखा दिया । फिर जहाँ के तहाँ यह लेकर क्या करूँगा ? उन्होंने कहा भगवन्। यह आप अच्छा नहीं कर रहे हैं, केवल घरवालियों की बात सुनते हैं, मेरी तरफ देखो।

भगवान् ने कहा तेरी तरफ क्या देखूँ ? तू सारे संसार के स्वरूप को समझ कर फिर मोह के रास्ते जाना चाह रहा है तो तेरी क्या बात सुनूँ। तब नारद जी ने समझ लिया कि भगवान् ने जो किया सो ठीक किया । नारद जी ने कहा एक बात मेरी मान लो। आपने मेरे को तरह तरह के नाच अनादि काल से नचाये और मैंने तरह तरह के खेल आपको दिखाये।

कभी मनुष्य, कभी गाय इत्यादि पशु, कभी इन्द्र, वरुण आदि संसार में कोई ऐसा स्वरूप नहीं जो चैरासी के चक्कर में किसी न किसी समय में हर प्राणी ने नहीं भोग लिया। अनादि काल से यह चक्कर चल रहा है, सब तरह से आपको खेल दिखाया आप मेरे को ले जाते रहे और मैं खेल करता रहा ।

अगर आपको मेरा कोई खेल पसंद आगया हो तो आप राजा की जगह पर हैं और मैं ब्राह्मण हूँ तो मेरे को कुछ इनाम देना चाहिये । वह इनाम यही चाहता हूँ कि मेरे शोक मोह की भावना निवृत्त होकर मैं आपके परम धाम में पहुँच जाऊँ ।

और यदि कहो कि तूने जितने खेल किये सब बेकार है, तो भी आप राजा हैं । जब कोई बार बार खराब खेल करता है तो राजा हुक्म देता है कि इसे निकाल दो । इसी प्रकार यदि मेरा खेल आपको पसन्द नहीं आया है तो फिर आप कहो कि इसको कभी संसार की नृत्यशाला में नहीं लाना है । तो भी मेरी मुक्ति है । भगवान् बड़े प्रसन्न होकर तराजू से उठे और नारद जी को छाती से लगाया और कहा तेरी मुक्ति तो निश्चित है।

क्यों हो परेशान जब आप कम सकते हो ऑनलाइन घर बैठे कोई मार्केटिंग नहीं कोई इन्वेस्टमेंट नही

हम बात कर रहे हैं घर बैठे कमाने के बारे में | हो सकता ये आपको आश्चर्य जनक लगे लेकिन इसमें कोई नयी बात नहीं है दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं...

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